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अनेकान्त: स्वरूप और विश्लेषण
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निक्षेप-न्यास का नाम है
न्यास, धरोहर पराया धन है। इसलिए आचार्यों ने इस न्यास को व्यवस्थित किया। 'न्यसनं न्यस्सत इति वा न्यासो इत्यर्थ:९३।"? सोचना या धरोहर रखना न्यास है।" जीवादीनां तत्त्वाना न्यासो भवति ।" (त० भ० सू० १/५) जीवादि तत्त्वों का न्यास भी होता है। धवलाकार ने इसे अधिक स्पष्ट करते हुए समझाया
संशये विपर्यये अनध्यवसाये वा स्थित तेभ्योऽपसार्य-अप्रकृत निराकरणद्वारेण प्रकृतप्ररूवो वा४।'
अर्थात्, संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय में अवस्थित वस्तु को उनसे निकालकर जो निश्चय में क्षेपण करता है, यह निक्षेप है।' उपायो न्यास उच्यते।" (धवला १/१) इसलिए जो उपाय है, वही न्यास है, जिसमें बाह्य पदार्थ के विकल्प हैं, जो अप्रकृत का निराकरण करके प्रकृत में निरूपण करने वाला है। निक्षेप भी उपाय स्वरूप है, वस्तु अर्थ की प्रतीति कराने वाला है, निक्षेप अर्थ का निरीक्षण करने वाला है, निक्षेप से सम्पूर्ण लोक व्यवहार चलता है। इससे वस्तु का स्वरूप, उसके भेदों और उसके अर्थ द्वारा विस्तार को भी प्राप्त किया जाता है, जैसे- जीव । यह जीव चेतनायुक्त है, यदि वही चित्र में किसी प्रकार से 'सिंह' रूप में हो तो सिंह की संज्ञा को प्राप्त हो जाएगा। किस तरह का न्यास
वस्तु का नामादि रूप में क्षेप करने या धरोहर रखने का नाम निक्षेप है। दव्वं विविहसहावं जेण सहावेण होई तं ज्झेयं । तस्स णिमित्तं कीरइ एक्कं पिय दव्वं चउभेयं५।।
द्रव्य विविध स्वभाव वाला है, जिस-जिस स्वभाव से वह अपने ध्येय को प्राप्त होता है, उस कारण से ही उस द्रव्य के भी चार भेद कर दिये जाते हैं जो निक्षेप, नय
और प्रमाण पर आधारित होकर वस्तु तत्त्व की प्रतीति कराने में अपनी भूमिका निभाते हैं। सम्पूर्ण विवेचन ही विवक्षित अर्थ पर आधारित होता है इसलिए अप्रकृत विषय निराकरण, प्रकृत विषय का प्ररूपण, संशय के विनाश एवं तत्त्वार्थ के बोध के लिए निक्षेप का कथन आवश्यक है। वस्तु अर्थ के विस्तारक
"निक्षेपविधिना शब्दार्थः प्रतीयते१६।"
निक्षेप विधि से शब्द के अर्थ का विस्तार किया जाता है। जैसे 'इन्द्र' शब्द को इन्द्र, इन्द्र की प्रतिमा को इन्द्र, इन्द्र से च्युत मनुष्य को भी इन्द्र, और शक्र को भी इन्द्र कहते हैं। इसमें वक्ता को श्रोता के अभिप्राय को ध्यान में रखना पड़ता है। श्रोता को भी
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