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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
महावीर के लिए। आदीस, आदीश्वर, ऋषभ, वृषभ, आदिनाथ। ७. एवंभूतनय
जं जं करेई कम्म देही मण-वयण-काय-चेट्ठा-दो। तं तं खु णामजुत्तो, एवंभूदो हवे स णओ १।।
जिस शब्द का जो वाच्य जिस कर्म को करता है या मन से, वचन से, शरीर से एवं आत्मा से जो भी चेष्टा करता है, वही उस उस नाम से युक्त हो जाता है, अर्थात् जो वस्तु जिस समय जिस यर्याय को प्राप्त हुई हो, उसी अर्थ बोध के लिए वही शब्द प्रयोग होना चाहिए, जो वर्तमान पर्याय का वाचक हो।
(i) जैसे राग परिणत जीव-रागी। (ii) विराग परिणत जीव-विरागी। (iii) ज्ञान-साधना रत-ज्ञानी। (iv) पूजा कर रहा है, इसलिए पुजारी । (v) दान दे रहा, है, इसलिए दानी।
प्रमाण और नय अनेकान्त के दो मूल विभाग हैं। अनेकान्त किसी को मिथ्या या किसी को सम्यक्, किसी को अच्छा या किसी को बुरा नहीं कहता है, अनेकान्त वास्तविकता का उद्घोषक है। निक्षेप-अनेकान्त का न्यास
वस्तु तत्त्व का जितना भी विवेचन है, वह युक्ति, तर्क, नय, प्रमाण आदि पर आधारित होता है। वस्तु तत्त्व, वस्तु अर्थ, वस्तु प्रतिपादन भेद-अभेद रूप होता है। भेदअभेद ज्ञान का विषय होता है और अनेक एवं एक रूप ज्ञान सत्य है जो पक्ष-प्रतिपक्ष को ग्राह्य है। जो लोग, एक पक्ष पर ही दृढ़ रहते हैं, एक ही नीति पर चलते हैं, वे दुराग्रह से ग्रस्त हैं, वे ही विरोधी कारणों को उत्पन्न करते हैं। तनाव वैमनस्य का रूप धारण कर लेता है, इसलिए अनेकान्त ने ऐसी व्यवस्था दी कि पहले यथार्थ को समझें, फिर उस पर चलें उसका विवेचन करें।
निक्षेप एक ऐसी ही निविष्ट पद्धति है, जहाँ वस्तु एक है, उसका अर्थ एक है, पर अनेक पर्याय रूप भी हैं, उसमें अनेक धर्मों का समावेश है।
वत्थू पमाण विसयं णयविसयं हवइ वत्थुएयंसं । ज दोहि णिण्णयकं तं णिक्खेवे हवे विसयं२।।
सम्पूर्ण वस्तु प्रमाण का विषय है और उसका एक अंश नय का विषय है और इन दोनों से निर्णय किया गया पदार्थ निक्षेप का विषय होता है। इसमें गुणों की अपेक्षा रहती है। यह आक्षेप करता है कि वस्तु या पदार्थ का यह नाम है, यह इसका रूप है, इसका यह अभिप्राय है और इसमें यह विद्यमान है। यह ऐसा न हो तो वस्तु तत्त्व की समीचीन व्याख्या नहीं हो सकती है।
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