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Multi-dimensional Application of Anekantavāda
वक्ता द्वारा वस्तु के अर्थ पर ध्यान देना होता है। यदि ऐसा नहीं होगा तो विनाश ही विनाश, अराजकता ही, अराजकता उत्पन्न हो जाएगी। अर्थ के विकल्प की प्ररूपणा अनधिगत अर्थ के निराकरण के द्वारा अधिगत अर्थ की प्ररूपणा भी की जाती है। नयों का विषय निक्षेप
नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत इन सातों ही नयों का विषय निक्षेप है। नय अर्थात्मक, ज्ञानात्मक और शब्दात्मक होते हैं, निक्षेप भी अर्थात्मक, ज्ञानात्मक और शब्दात्मक होते हैं। इनमें एक दूसरे का सम्बन्ध है। विषय
विषयी नामनिक्षेप - शब्दात्मक
व्यवहार, शब्दनय स्थापना निक्षेप-ज्ञानात्मक
व्यवहार, संकल्पग्राही नैगमनय । द्रव्यनिक्षेप- अर्थात्मक
व्यवहार-नैगम, संग्रह, व्यवहार, भाव निक्षेप-अर्थात्मक
व्यवहार- ऋजुसूत्र शब्दनय । निक्षेप प्रकार
जो शब्द जितने अर्थों को विषय कर सकता है, उतने ही उसके निक्षेप हो सकते हैं। जितनी वस्तुएं हैं, वे सभी वस्तुएं गुण से युक्त हैं, उनकी पर्यायें हैं, उनके आकारप्रकार हैं और उनके नाम भी हैं।" श्रुत नयाधिगतानां द्रव्य-पर्यायाणां जीवाद्यर्थानां प्ररूवणं न्यासो निक्षेप:९७।" श्रुत नय के अधिगत द्रव्य-पर्यायों का जीवादि अर्थ में प्ररूपण, न्यास है, निक्षेप है। उसकी भूत, भविष्यत पर्यायें है और वर्तमान पर्याय भी होती हैं।' निक्षेपो नाम-स्थापना-द्रव्य-भावैर्वस्तुनो न्यास:९८।”
निक्षेप-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव के द्वारा वस्तुओं का न्यास करता है। आगम, सिद्धान्तादि ग्रन्थों में निक्षेप के उपर्युक्त चार भेद हैं। षट्खण्डागम के वर्गणा प्रकरण में वर्गणानिक्षेप के माध्यम से निक्षेप के छ: भेद भी प्राप्त हैं- (i) नामवर्गणा, (ii) स्थापना वर्गणा (iii) द्रव्यवर्गणा, (iv) क्षेत्रवर्गणा (v) कालवर्गणा और (vi) भाववर्गणा। मूलतः निक्षेप चतुष्टयी रूप में प्रसिद्ध है, (i) नाम (ii) स्थापना, (iii) द्रव्य और (vi) भाव। १. नामनिक्षेप (वस्तु का नामाश्रित व्यवहार)
नाम के अनुसार वस्तु में गुण न होने पर भी व्यवहार के लिए जो पुरुष के प्रयत्न से नामकरण किया जाता है, वह नाम निक्षेप है। इसमें विवक्षित अर्थ से निरपेक्ष इच्छानुसार नामकरण किया जाता है, जैसे किसी व्यक्ति का नाम 'महावीर' है, उसका यह नाम भगवान् महावीर का द्योतक नहीं बन जाएगा। इसलिए नाम संज्ञाकर्म का द्योतक है।
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