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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
कार्य हैं या जितने भी वचन व्यवहार किए जाते हैं वे सभी पर पदार्थों पर आश्रित होते हैं। जैसे -सिद्ध-के लिए विविध विशेषण -
(१) निरवशेष रूप से अन्तर्मुखाकार, ध्यान-ध्येय से विकल्प रहित । (२) क्षायिक सम्यक्त्वादि अष्टगुणों की पुष्टि से तुष्ट। (३) विशिष्ट गुणों के आधार होने से तत्त्व के तीन स्वरूपों में परम । (४) तीन लोक के शिखर से आगे गति हेतु का अभाव होने से लोकाग्रस्थित।
(५) व्यवहार से अभूत मूर्त पर्याय में से च्युत होने का अभाव होने के कारण नित्य। व्यवहारनय के भेद-प्रभेद
१. पृथकत्व व्यवहार - जहाँ भिन्न द्रव्यों में एकता हो । २. एकत्व व्यवहार - एक वस्तु में भेद ।। ३. सद्भूत-व्यवहार- एक वस्तु विषयक जीव के मतिज्ञान । ४. असद्भूत व्यवहार - भिन्न-भिन्न वस्तु विषयक । देवदत्त धन। ५. सामान्य-व्यवहार - सामान्य रूप से अर्थ का भेद । (सेना, हाथी) ६. विशेष व्यवहार- यथा-जीवा: संसारिणो मुक्ताश्च ।
व्यवहारनय
अशुद्धार्थ भेदक
अशुद्धार्थ भेदक सामान्य संग्रह भेदक
विशेषसंग्रह भेदक पृथकत्व
एकत्व सद्भूत
असद्भूत उपचरित
अनुपचरित निश्चय और व्यवहार नय
जाणदि पस्सदि सव्वं ववहारणएण केवली भगवं । केवलणाणी णाणदि, पस्सदि णियमेण अप्पाणं ।।
व्यवहार नय भेद विषय को ग्रहण करने वाला है, इसलिए व्यवहार नय से केवली भगवान त्रिलोकवर्ती एवं त्रिकालवर्ती सचराचर द्रव्य, गुण-
पर्यों को एक समय में जानते हैं और देखते हैं। निश्चय अभेद/सामान्य को ही ग्रहण करने वाला है। इसलिए निश्चयनय से परद्रव्य के ग्राहकत्व, दर्शकत्व, ज्ञायकत्व आदि के विविध विकल्प समूह के कारणों का अभाव करके केवल निजस्वरूप को जानते हैं व देखते हैं।
- ज्ञान का धर्म दीपक की भाँति हैं, जो स्वयं प्रकाशित है और दूसरों को भी प्रकाश देता है। घटादि की प्रमिति से प्रकाश दीपक कथंचित् भिन्न होने पर भी स्वयं प्रकाश स्वरूप
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