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अनेकान्तः स्वरूप और विश्लेषण
251 होने से 'स्व' और 'पर' को प्रकाशित करता है। आत्मा भी ज्योति स्वरूप है, इसलिए वह व्यवहार से त्रिलोक और त्रिकाल को पर रूप में तथा स्वयं प्रकाश स्वरूप आत्मा को निज रूप में प्रकाशित करता है।
णाणं अप्प पयासं णिच्छयणएण दंसणं तम्हा । अप्पा अप्पपयासो णिच्छयणएण दंसणं तम्हा२।।
निश्चयनय से ज्ञान और दर्शन स्वप्रकाशक हैं, आत्मा भी स्वप्रकाशक है, इसी तरह व्यवहारनय से ज्ञान परप्रकाशक है, दर्शन भी परप्रकाशक है, व्यवहार में आत्मा भी परप्रकाशक है इसलिए दर्शन भी परप्रकाशक है।
निश्चय और व्यवहारनय अनेकान्तरूपी रथ के दो पहिए हैं, दोनों का अपनाअपना महत्त्व है, दोनों ही वस्तु तत्त्व का दर्शन कराने वाले है, विरोधी नहीं। अनेकान्त के सप्त सूत्रधार
"नैगम-संग्रह-व्यवहारर्जुसूत्र-शब्द-समाभिरूढेवंभूताः नया: ३ ।।
(१) नैगम, (२) संग्रह (३) व्यवहार (४) ऋजुसूत्र (५) शब्द, (६) समभिरूढ और एवंभूत ये सात नय हैं। प्रमाण से ये भिन्न हैं, फिर भी शब्द द्वारा उनका बोध किया जाता है। इनसे जानने योग्य विषय को व्यक्त करने वाला श्रुतज्ञान है और श्रुतज्ञान के एक देश/एक भाग को विषय करने वाला नय है। ये नय शब्दात्मक और ज्ञानात्मक हो जाते
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सामान्यादेशतस्तावदेक एव नय: स्थितः । स्याद्वाद प्रविभक्तार्थ-विशेष-व्यंजनात्मक:७४।।
सामान्य विवक्षा से नय एक ही है, स्याद्वाद/अनेकान्त पर आधारित विशेष का कथन करने वाले नय अनेक हैं। नैगमादि सात नयों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है१. नैगम
“संकल्पमात्रस्य ग्राहको नैगमो नय:५।'' जो संकल्पमात्र का ग्राहक होता है, वह नैगम नय है। 'न एकं गम: नैगम:' जो धर्म और धर्मी में से एक ही अर्थ को नहीं जानता है, किन्तु गौण एवं प्रधान रूप से धर्म-धर्मी दोनों को विषय करता है, वह नैगम नय है। जैसे जीव का गुण सुख है या जीव सुखी है। अरहंत को सिद्ध कहना या मिट्टी के घड़े को घी का घड़ा कहना । वस्त्रादि पहनकर तैयार हुए छात्र से पूछना कि आप कहाँ जा रहे हो? तब वह उत्तर देता है कि विद्यालय जा रहा हूँ। नैगम नय के तीन भेद हैं - (i) भाविनैगमनय (ii) भूत नैगम नय और (iii) वर्तमान नैगम नय।
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