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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
हवंति सम्मत्त-सब्भावा" और यदि वे एक दूसरे के पक्षपाती हैं तो वे ही सम्यक्त्व स्वभाव वाले हैं, सापेक्ष नय/सुनय हैं, 'विसंजुत्त' हैं।
___ यदि नय अपने-अपने वक्तव्य में सच्चे हैं, और यदि वे पर विगालन/दूसरे के वक्तव्य के निराकरण में मुग्ध हैं, तो वे ही असत्य बन जाते हैं।' अनेकान्त सिद्धान्त का ज्ञाता कभी यह विभाग नहीं करता कि 'यही सत्य है या यही अलीक है। अनेकान्त तो 'वस्तु' के वस्तुत्व गुण के आधार पर यही कहता है कि 'वस्तु' है- 'सत्' भी और 'वस्तु' असत् भी है। भूतार्थ और अभूतार्थ
भूतार्थ समत्व पर आधारित होता है, यह समत्व को लाकर एकत्व की स्थापना करता है। समत्व को अपनाकर ही सम्यग्दृष्टि को अपनाने वाला एवं, समीचीनता को प्रदान करने वाला बनता है। यह अन्य द्रव्य में अन्यद्रव्य के परिणमन को स्वीकार नहीं करता है।
___"भूदत्थो जाणंतो ण करेदि दु तं असंमूढो५६।'
भूतार्थ को जानने वाला असंमूढ है, मोहभाव रहित है, अन्तरात्मा में रत ज्ञानी है, भेदाभेद रत्नत्रय की भावना युक्त है तथा सम्यग्दृष्टि है।
भूतार्थ से निर्णीत हुए जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष सम्यक्त्व हैं, समीचीन हैं। भूतार्थ में स्वरूप दर्शन, अनुभवन, अवलोकन, उपलब्धि, संवृत्ति, प्रतीति, ख्याति, अनुभूति आदि का प्रत्यक्षीकरण होता है। हेय-उपादेय तत्त्व को जानकर विशुद्ध ज्ञान का दर्शन कराने-वाला भूतार्थनय है। भूतार्थ-परिज्ञानं किम् ?
___भूतार्थ के ज्ञान का क्या स्वरूप है? तीर्थ की प्रवृत्ति के दृष्टि से नवपदार्थ भूतार्थ हैं। भूतार्थ में -“शुद्धात्मा प्रद्योतते प्रकाशने प्रतीयते अनुभूयते इति । वा अनुभूति प्रतीति: शुद्धात्मोपलब्धिः।” अर्थात् एक शुद्धात्मा झलकता है, प्रकाशित होता है, प्रतीति में आता है और उसका अनुभव किया जाता है' अनुभूति और प्रतीति शुद्धात्मा की उपलब्धि है।
ये च प्रमाण-नय-निक्षेपाः परमात्मादितत्त्व-विचारकाले सहकारि-कारणभूतास्तेऽपि सविकल्पावस्थायामेव भूतार्थाः।" ।
जो प्रमाण, नय और निक्षेप हैं, वे परमात्मादि तत्त्व विचार काल में सहकारि कारणभूत हैं। वे सविकल्प अवस्था में ही भूतार्थ हैं।
"भूदत्थमस्सिदो खलु सम्मादिट्ठी५७।' -भूतार्थ के आश्रय वाला सम्यग्दृष्टि है। "ये भूतार्थमाश्रयन्ति त एव सम्यक् पश्यतः सम्यग्दृष्टयो भवंति न पुनरनेकान्तकस्था नीयत्वात् शुद्धनयस्या" य एव परमार्थं परमार्थबुद्धया चेतयन्ते त एव समयसारं चेतयन्ते।'
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