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________________ 47 ६. भविष्यदत्तपंचमीकथा-(के कर्ता श्रीधर) ७. श्रुतावतारकथा-(के कर्ता श्रीधर) उक्त ७ श्रीधरों में से सातवें श्रीधर विबुध उपाधि से विभूषित अवश्य हैं, किन्तु उनका समय अनिश्चित है । रचना नवीन प्रतीत होती है । उनके श्रुतावतार-कथा के वर्णनों में कई ऐतिहासिक त्रुटियाँ भी पाई जाती हैं, जो अनुसन्धान की कसौटी पर खरी नहीं उतरती । पांचवें विश्वलोचनकोष के श्रीधर सेनवंश के विद्वान प्रतीत होते हैं, क्योंकि वे सेन विशेषण से विभूषित हैं । ग्रन्थ-प्रशस्ति से विदित होता है कि इनके गुरु को, था । इन श्रीधरसेन ने नागेन्द्र एवं अमरसिंह आदि के कोषों का सार लेकर विश्वलोचनकोष की रचना की थी । इनका जन्म अथवा रचना काल जानने के लिए सन्दर्भ सामग्री अनुपलब्ध है । उक्त दोनों रचनाएँ संस्कृत की हैं इनसे यह विदित होता है कि अन्य श्रीधरों से ये दोनों श्रीधर भिन्न हैं । छठवीं 'भविष्यदत्तपंचमी कथा' भी संस्कृत रचना है । उसकी प्रशस्ति में कविपरिचय सम्बन्धी कोई सन्दर्भ-सामग्री प्राप्त नहीं होती । दिल्ली के एक शास्त्र-भण्डार में उसकी एक जीर्ण-शीर्ण प्रतिलिपि प्राप्त हुई है जिसका प्रतिलिपि काल वि० सं० १४८६ हैं । इससे तो यह स्पष्ट है कि ये श्रीधर वि.स. १४८६ के पूर्व हो चुके थे किन्तु वास्तविक परिचय प्राप्त करने के लिए साधन-सामग्री का अभाव है। ऐसा विदित होता है कि ये श्रीधर भी अन्य श्रीधरों से भिन्न होंगे । चतुर्थ श्रीधर के भविसयत्त-पंचमी-चरिउ का लेखन काल ग्रन्थकार ने स्वयं ही अपनी ग्रन्थ-प्रशस्ति में १५३० वि. सं. अंकित किया है । इसके लेखनकाल को देखकर इन कवि श्रीधर को अन्य श्रीधरों से भिन्नता निश्चित है । इसकी अन्त्य प्रशस्ति में कवि श्रीधर मुनि उपाधि से विभूषित हैं तृतीय श्रीधर की रचना 'भविसयत्तकहा की अन्त्य-प्रशस्ति में लेखक ने उसका लेखन काल वि. सं. १२३० स्पष्ट कर दिया है तथा लिखा है, "चंदावर नगर में स्थित माथुरकुलीन नारायण के पुत्र तथा वासुदेव के बड़े भाई सुपट्ट ने कवि श्रीधर से कहा कि “आप मेरी माता रुप्पिणी के निमित्त पंचमीव्रत फल-सम्बन्धी 'भविष्यदत्त कथा' का . निरूपण कीजिए।" द्वितीय श्रीधर ने अपने 'सुकुमालचरिउ' में उसका लेखनकाल वि०सं० १२०८ अंकित किया है तथा ग्रन्थ-प्रशस्ति के अनुसार उसने उसकी रचना 'बलडइ' ग्राम में राजा गोविन्दचन्द्र के समय में की थी । यह रचना पीथेपुत्र कुमर की प्रेरणा से लिखी गई थी। अन्तर्बाह्य साक्ष्यों के आधार पर प्रथम रचना 'पासणाह चरिउ' के कर्ता श्रीधर की अभिन्नता 'वढमाण चरिउ' के कर्ता श्रीधर के साथ निश्चित है । 'पासणाह चरिउ' की प्रशस्ति के अनुसार उसका रचनाकाल वि० सं० ११८९ है ।। उक्त श्रीधरों का तुलनात्मक अध्ययन करते समय कई जटिल समस्याएँ उठ खड़ी होत हैं । उक्त समस्त कृतियों का रचनाकाल वि० सं० ११०९ से १५३० के मध्य (अर्थात् ४२१ वर्षों के भीतर) ठहरता है । अतः यह कहना तो असंगत ही होगा कि वे सभी कृतियों किसी एक कवि की रह होगी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014005
Book TitleProceedings of the Seminar on Prakrit Studies 1973
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages226
LanguageEnglish
ClassificationSeminar & Articles
File Size13 MB
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