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अतः तीर्थवन्दना और गंगास्नान से आत्मा को पवित्र करने की विचारणा विद्वान लोगों की नहीं है, अपितु मूढ लोगों में परम्परा से यह विश्वास प्रचलित हो गया है
जुत्ति-वियारण-जोग्गं तम्हा एयं ण होइ विबुहाण । मूढ-जण-वयण-वित्थर-परम्पराए गयं सिद्धी ॥-कुव० ४९.४ इस परम्परागत विश्वास के कारण ही अज्ञानी जनता लोक में भ्रमण करती रहती है।'
इस प्रकार की विचारधारा प्रायः सभी जैन रचनाओं में व्याप्त है। आचार्य हरिभद्र ने भी समराइच्चकहा में नरबलि एवं हिंसक धार्मिक अनुष्ठानों की निस्सारता प्रतिपादित की है। छठे भव में नायक जब स्वयं देवी के समक्ष बलि देने प्रस्तुत हो जाता है तो देवी प्रगट होकर हिंसक बलि लेने से इंकार कर देती है । और भी ऐसे निषेधात्मक प्रसंग इस युग के प्राकृत साहित्य में खोजे जा सकते हैं ।
लोकतात्त्विक दृष्टि से विचार करने पर तत्कालीन समाज में इस प्रकार के धार्मिक विश्वासों के अस्तित्व का पता चलता है, जो उस आदिम लोक-मानस का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसमें मूल प्रवृत्ति-भय के कारण इन धार्मिक अनुष्ठानों का जन्म हुआ था । लोकतत्त्वों के निर्माण में धार्मिक विश्वासों का महत्वपूर्ण योग रहो है। किन्तु जैन चिन्तकों का धर्म किसी भय अथवा अज्ञान पर आधारित नहीं है। शुद्ध तत्त्वज्ञान एवं तार्किक ढङ्ग से विकसित हुआ है। अतः जैन धर्म सम्बन्धो साहित्य में क्रमशः धार्मिक अनुष्ठानों से सम्बन्धित लोकतत्त्वों को कम स्वीकृति मिली है यद्यपि भारतीय समाज के अङ्ग होने के कारण प्राकृत कथाकार तथा जैन श्रावक इनसे सर्वथा मुक्त नहीं हो सके हैं।
कुवलयमालाकहा के प्रमुख कथानक में २७ अवान्तर कथाएँ हैं। उनमें से अधिकांश में लोककथाके तत्त्व उपलब्ध हैं, जो स्वाभाविक हैं। विशेष बात यह दृष्टिगोचर होती है कि इन कथाओं के माध्यम से आदिम लोकमानस का स्वरूप भी उभर कर सामने आता है। उसकी अभिव्यक्ति इन चार प्रकार के लोकतत्त्वों द्वारा होतो है :---
१ टोना विचारणा-लोकमानस जब किसी कारण द्वारा कोई कार्य होता हुआ अनुभव करता है तो उसकी एक धारणा बन जाती है कि ऐसा होने पर ऐसा होता है । माता द्वारा देखे गये स्वप्नों के आधार पर बालक के भविष्य का अनुमान लगाना इसी प्रकार का लोकविश्वास है । यद्यपि इसे स्वप्नविज्ञान के रूप में जाना जाता रहा है। उद्योतनसूरि एवं हरिभद्रसूरि ने अपनी कथाओं में माता के स्वप्नों की पूर्ण व्याख्या की है । टोनाविचारणा के अन्तर्गत रहस्य, कौतूहल, अप्राकृतिक, अतिप्राकृतिक, अद्भुत आदि तत्व स्वीकार किये जा सकते हैं । कुवलयमाला में इस प्रकार के निम्न लोकतत्त्व उपलब्ध होते हैं :
१-कुवलयचन्द्र के घोडे का आकाश में उड़ जाना, २-राक्षस द्वारा लोभदेव का जहाज समुद्र में डूबा देना, ३-मोहदत्त को दिव्यध्वनि द्वारा आगाह करना और
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