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भक्तामर स्तोत्र में भक्ति एव साहित्य
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पुनः इतना ही चाहता हूँ कि हे जिनेन्द्र ! मेरे अपने कर्मवन्धन काटने में मैं तेरी भक्ति में कुछ गा सकूँ...गुनगुना सकूँ, ऐसी शक्ति दे...भक्ति दे।
"वंदन यो जिनेन्द्राणां, त्रिकालं कुरने नरः ।
तस्य भावं विशुद्धस्य, सर्व नश्यति दुष्कृतं ।।" हे आदि तीर्थ कर, हे भक्तामर के कर्ता मानतुगाचार्य ! आपके चरणों में वंदन।
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