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जैन मुनियों के नामान्त पद या नन्दियाँ मिती फागण सुदि ५ श्री जयतारण मध्ये -
कचरौ कर्पूरलाभ - उदयहर्ष रौ उदयचन्द आणंदलाभ
ज्ञानमूर्ति रौ . तोडर
ज्ञानलाभ रायसिंह राजलाभ
राजर्ष गै भावसिंह भुवनलाभ खेतौ नयनलाभ
ज्ञानहर्ष रौ
(पुवालिया ग्रामे ) मिती वैशाख सुदि ३ दिने आगरा मध्ये - जेसिंघ
यशोलाभ गुणसेन रौ कर्मचन्द कांतिलाभ
कल्याणविजय रो योधौ जयलाभ
महिमाकुमार रौ बालचन्द : विनयलाभ
विनयप्रमोद रो
मतिहर्ष रौ
उपर्युक्त दीक्षाएँ केवल एक वर्ष में एक. ही नन्दी में हुई हैं। श्री जिनरत्नसूरिजी श्रीपूज्य आचार्य थे जो त्यागी, पंचमहाव्रतधारी थे। उस जमाने में सभी गच्छों में गच्छनायक श्रीपूज्य कहलाते और उन्हें यति कहा जाता था। साधु, यति, ऋषि, मुनि, श्रमण, निग्रन्थ आदि १० पर्यायवाची शब्द हैं । सं. १७०७ से पूर्व श्री जिनरत्नसूरिजी या उनके पूर्ववर्ती आचार्यों ने दीक्षाएँ दी, उनकी सूची अप्राप्त है। इस सूची से वे कहाँ कहाँ विचरे, कहाँ किसे किस संवत् मिति, स्थान में दीक्षा दी, गुरु का नाम, गृहस्थावस्था का नाम, दीक्षानाम, शाखा आदि अनेक बातों का पता चल जाता है। एक एक नंदी में दस, बीस, पचास, सत्तर तक दीक्षाएँ हुई जिनका प्रामाणिक विवरण ऐसे दफ्तरों में मिलता है। यदि इतिहासकारों के पास ऐसे बहुमुल्य दस्तावेज हों तो उनकी अनेक समस्याएँ हल हो सकती हैं। प्रामाणिक
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