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जैन साहित्य समारोह - मुच्छ १ प्रवर्तिनी नाम प्येवं नामानि परिकीर्तयेत् । महत्तराणां तैः पूर्वैः सर्वे पूर्व पदैरपि ॥३४॥ श्रीरुत्तर पदे कार्या नान्या सु व्रतिनीषु च । मुनि नामानि सर्वाणि स्त्रियामादादि योजनात् ।।३५।। जायन्ते व्रतिनी संज्ञाः श्रान्तैः केश्चिन्महत्तराः । विशेषान्नंदि सेनान्ताः संज्ञास्युर्जिनकीर्तनम् ॥३६।। शेषानामानितुल्यान्युभयो रपि सर्वदा । विप्राणामपि नामानि बुद्धार्हद्विष्णु वेधतां ॥३७॥ गणेश कार्तिकेयार्क श्चन्द्रशङ्कर धीमताम् । विद्याधर समुद्रादि कल्पद्रुजययोगिनाम् ॥३८॥ सामानान्युत्तमातांच नामानि परिकल्पेयत् । ब्रह्मचारि क्षुल्लकयोर्ननाम्ना परिवर्तनम् ॥३९॥
(इसके बाद क्षत्रिय वैश्यादि के नामकरण का उल्लेख सर्व गा. ४९ तक है।)
भावार्थसार :- प्राचीन काल में साधु एवं सूरिपद के समय नामपरिवर्तन नहीं होते थे, पर वर्तमान में गच्छसंयोग वृद्धि के हेतु ऐसा किया जाता है। १ योनि, २ वर्ग, ३ लभ्यालभ्य, ४ गण और ५. राशिभेद को ध्यान में रखते हुए शुद्ध नाम देना चाहिए । नाम में पूर्वपद एवं उत्तर पद इस प्रकार दो पद होते हैं। उनमें मुनियों के नामों में पूर्वपद निम्नोक्त रखे जा सकते हैं ----
१ शुभ, २ देव, ३ गुण, ४ आगम, ५ जिन, ६ कीर्ति, ७ रमा (लक्ष्मी), ८ चन्द्र, ९ शील, १० उदय, ११ पन, १२ विद्या, १३ विमल, १४ कल्याण, १५ जीव, १६ मेघ, १७ दिवा. कर, १८ मुनि, १९ त्रिभुवन, २० अंभोज (कमल), २१ सुधा,
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