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भारतीय साहित्य को जैन साहित्य की देन
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दिगम्बर जैन साहित्य की बडी सेवा की है। उनके लेखा का संग्रह अवश्य प्रकाशित होना चाहिए । ___डॉ. नेमिचन्द शास्त्री का शोधप्रबन्ध 'संस्कृत काव्यके विकासमें जैन कवियों का योगदान' नामक ग्रन्थ भी उल्लेखनीय है, जो भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हो चुका है। इससे पहले उनका एक और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ 'प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' प्रकाशित हो चूका है। इसी विषय का एक अन्य महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ डा. जगदीशचन्द्र जैन का भी प्रकाशित हो चूका है । जिसका नाम 'प्राकृत साहित्यका इतिहास' है। यह चौखम्बा विद्याभवन-बनारस से प्रकाशित हो चूका है। वहीं से तामिल जैन साहित्य सम्बन्धी ग्रन्थ भी अंग्रेजी में प्रकाशित है।
अपभ्रंश में अधिकांश साहित्य जैनो का है ओर उसके सम्बन्ध में भी काफी जानकारी प्रकाश में आ चुकी है। 'हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास' पहले पं. नाथूरामजी प्रेमी फिर स्वर्गीय श्री कामताप्रसादजी जैन के भी हिन्दी जैन साहित्यपरिशीलन के दो भाग का बडा ग्रन्थ हिन्दी जैन साहित्य के इतिहास सम्बन्धी स्वतंत्र रूप से प्रकाशित होना चाहिये। डॉ. कस्तुरचन्द कासलीवालने एक महान योजना चालु की है जिस का प्रथम भाग अभी निकला है। पार्श्वनाथ विद्याश्रम से जैन साहित्य के इतिहास के ६ भाग प्रकाशित हुए हैं। उसके आगे का भाग भी शीघ्र ही प्रकाशित होना चाहिये।
प्राकृत भारती, जयपुरसे अभी 'राजस्थान का जैन साहित्य' ग्रन्थ निकला है। इसी तरह अन्य प्रान्तो के जैन साहित्य सम्बन्धी ग्रन्थ भी निकलने चाहिये ।
जैन कन्नड साहित्य सम्वन्धी एक ग्रन्थ पं. भुजबली शास्त्री का प्रकाशित हुआ है, पर सारे जैन कन्नड साहित्य सम्बन्धी बडा ग्रन्थ प्रकाशित होना बाकी है । अपभ्रंश साहित्य जैनो का ही अधिक है। उसके संबन्ध में एक शोधप्रबन्ध डॉ. हरिवंश काठड का कई वर्ष
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