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जैन साहित्य समारोह
का काम पूरा नहीं हो जाता। इन ग्रन्थो में जिन ग्रन्थकारों और उनकी रचनाओं का विवरण दिया गया है उनके अतिरिक्त बहुत बड़ा साहित्य ऐसा रह जाता है जिसका सिल-सिलेवार इतिहास लिखा जाना बहुत ही जरूरी है। पर कोई व्यक्ति इतना श्रम भी तो क्यों करे ? न तो समाज की ओर से उसे प्रोत्साहन मिलता है, न समुचित पारश्रमिक ही फिर जिस तरह उन दे। ग्रन्थों का प्रकाशन लिखने के ईतने वर्षों बाद और बडी कठनाई से हो सका है। तो लेखक का उत्साह ही नहीं होता। दिगम्बर समाज की संस्थाओने व धनीमानी व्यक्तिओं को जैन कथानुयोग एवं चरणयोग सम्बन्धी साहित्यका भी इतिहास पं. कैलासचन्द्रजी आदि से तैयार करवा के शीघ्र ही प्रकाशित करवाना चाहिये।
दिगम्बर जैन साहित्य का काफी विवरण श्री नाथुरामजी प्रेमी व जुगलकिशोर से मुखतार के जैन साहित्य और इतिहास पर विशाद प्रकाशक नामक ग्रन्थो में प्रकाशित हुआ है। पर वे उनके लेखो के संग्रहग्रन्थ है अतः किसी विषय के सिलसिलेवार इतिहास तो स्वतंत्र ग्रन्थ के रूप में ही लिखे जाने चाहिए। वैसे महावीरनिर्वाण शताब्दी महोत्सव पर ऐसे दो महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ और प्रकाशित हुए हैं। उनका भी उल्लेख यहाँ कर देना आवश्यक है। पहला ग्रन्थ है 'तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा' । वह महान ग्रन्थ ८ भागो में दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद से प्रकाशित हुआ है। इसके लेखक है स्व. डॉ. नेमिचन्द शास्त्री ज्योतिषाचार्य । अपने ढंग का यह सबसे बड़ा
और महत्त्व का प्रयत्न है। यह डा. नेमिचन्द्रजीकी अंतिम विशिष्ट महान रचना है। और निर्वाणशताब्दी की विशिष्ट उपलब्धी है।
दूसरा ग्रन्थ है 'जैन धर्म का प्राचीन इतिहास' । इसके प्रथम भाग में तो २८ तीर्थकरा की जीवनी है पर दूसरा भाग जो पं. परमानन्दजी शास्त्रीने लिखा है उसमें दिगम्बर जैन गन्थकारो और उनकी रचनाएँ सम्बन्धी काफी जानकारी दी गई है ! पं. परमानन्दजीने वास्तव में
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