________________ Homage to Vaisali 288 अजातशत्रु-अम्बपाली तुमने मुझे पराजित किया, मैं आज ही वापस जा रहा हूँ! बम्बपाली-वंथाली-विजेता अम्बपाली को यह श्रेय दे रहे हैं, यह उनकी कृपा है / अजातशत्रु-अजातशत्रु के हृदय में दया, ममता, कृतज्ञता आदि कोमल भावनाएं नहीं हैं, राजनतंकी यह सिर्फ जय जानता है / अपनी परावय को जय मानने की क्षुद्रता इसमें नहीं है / लेकिन, याद रखना, अजातशत्रु पराजय नहीं बर्दाश्त कर सकता। मुझे वैशालीविजय को फिर थाना पड़ेगा अम्बपाली-आइएगा, पर अब पहले महामन्त्री बस्सकार को नहीं भेजिएगा, सम्राट ! अजातशत्रु-अब उसकी जरूरत नहीं रह गई, अम्बपाली। मेरा वैशाली-विषय का पण तो प्रशस्त हो चुका है ! वह झपटकर, तेजी से, वहां से चल पड़ता है-अम्बपाली उसकी पीठ को एकटक, देखती रह जाती है उसके मुंह से शब्द नहीं निकलता, लेकिन उसको आँखें पुकार-पुकार कर कह रही हैं, यह अजीब पुरुष है !