________________ 286 Homage to Vaisali अम्बपाली-उन्हें जानने को लाचार होना पड़ेगा। बवावशत्रु-(आवेश में) क्या कहा ? * .... अम्बपाली-(लापरवाही से) मैंने कहा, मगधपति को सोचना पड़ेगा कि अम्बपाली अगर मगध जाने को राजी न हुई तो वह क्या करेंगे। अजातशत्रु-तुम नहीं जाती ? (मवें टेढ़ी करता है) अम्बपाली–जरा अपनी भवें सीधी कीजिए, भगषपति / यह हम नारियों का ही श्रृंगार है। अजातशत्रु-(आगबबूला होकर) सम्हलकर बोलो राजनतंकी, तुम किसके सामने बोल रही ही। अम्बपाली-उसके सामने, जो मुझसे प्रणय-भिक्षा मांगने आया है। भिखारी को घमंड नहीं शोभता! अजातशत्रु--फिर उचककर खड़ा हो जाता है / अजीब उसकी मुखमुद्रा हो रही हैवह बेचैनी से मंच पर टहलने लगता है-कुछ देर तक अम्पाली चुपचाप खड़ी रहती हैफिर विनम्रता के शब्दों में कहती है अम्बपाली-मगधपति ! - अजातशत्रु-(कुछ जबाब नहीं देवा, टहलता रहता है। . अम्बपाली-मगधपति से मेरा निवेदन है, भासन ग्रहण करें। अजातशत्रु-(रुककर, उसके चेहरे पर अखि गड़ाकर) सुन्दरी, तुम्हें याद रखना चाहिए कि वैशाली-विजेता से बातें कर रही हो ! अम्बपाली-वैशाली-बिजेता पर भी जिन्होंने विजय प्राप्त की थी, उनसे भी अम्बपाली ने ऐसी ही बातें की पी! अजातशत्रु-(चौंककर) कौन है, जिसने मुझ पर विजय प्राप्त की ? अजातशत्रु अजय है, राजनतंकी! अम्बपाली-आह ! आदमी अभिमान में अपने-आपको इतना भूल जाता है ! अजातशत्रु-(आखें गुरेरता है) अम्बपाली-मेरा मतलब भगवान् बुद्ध से था, मगधपति! अजातशत्रु-लोह, अब समझा ! हाँ, सुना था, भगवान बुद्ध तुम्हारे पाम्रकानन में ठहरे थे। उनसे तुम्हारी बातें हुई थीं। अम्बपाली-सिर्फ एक सन्ध्या को नहीं, सात दिन की सात सन्ध्याएं उनसे बातें करने में मेरी गुजरी। अजातशत्रु-फिर क्या हुआ ?