________________ अम्बपाली : एक दृश्य 285 अम्बपाली आँखें गड़ाकर अजातशत्रु के चेहरे को देखती है-उसके शीतला के दाग से भरे चेहरे पर अजीब करता दिखाई पड़ती है-अम्बपाली को यों घूरते देख वह हंसकर बोलता है अजातशत्रु-क्यों ? मैं कुरूप हूँ, यही न देख रही हो? अम्बपाली-इसके पीछे की चीज भी। अजातशत्रु-तुम मुखमुद्रा पढ़ सकती हो ? अम्बपाली-आप शस्त्र चला सकते हैं ? अजातशत्र-आह ? (जोरों से हँसकर) तुम-जैसी राजनतंकी पाकर कोई भी राजसमा धन्य हो सकती है। अम्बपाली-(उसका अभिप्राय भांपकर) आप यों मेरा अपमान नहीं कर सकते / अजातशत्रु-मैं तो तुम्हें सम्मान देने आया है। वैशाली-विजेता आज वहाँ की राजनतंकी अम्बपाली से...... अम्बपाली-(बीच ही में बात काटकर) प्रणय की भीख मांगने आया है ! क्यों, यही न कहना चाहते थे? अजातशत्रु-बिलकुल ठीक ! उफ, तुम कितनी बुद्धिमति हो, सुन्दरी ! अम्बपाली-अम्बपाली प्रशंसा की भूखी नहीं है, मगधपति / और प्रशंसा वैशालीविजेता के मुंह से / ऐसी प्रशंसा को वह लानत देती है; घोसले को उजाड़नेवाले बहेलिये से चिड़िया चमकार सुनना पसंद नहीं करती। अजातशत्रु-हां, पहले पंख पटफटाती है, चंगुल और चोंच चलाती है। लेकिन पीछे . पालतू बनकर हाथ पर खेलती है, कन्धे पर फुदकती है और सिर पर घोसला बनाती है / क्यों ? (अजीब उपेक्षाभाव से हंसता है) अम्बपाली-(तमककर) कोई ऐसी चिड़ियां भी हो सकती है, जो पंख पटक कर मर जाना पसंद करेगी, लेकिन बहेलिये का अहसान न लेगी। अजातशत्रु-ऐसी चिड़िया आज तक नहीं देखी गई। अम्बपालो-आदमी सिर्फ चिड़िया नहीं है। अजातशत्रु-मगधपति साधारण आदमी नहीं है। अम्बपाली-अम्बपाली भी साधारण नारी नहीं है। अजातशत्रु-तुम क्या बोल रही हो, सुन्दरी ? अम्बपाली-आप क्या चाह रहे हैं मगधपति ? अजातशत्रु-मैं क्या चाहता हूँ, यह कहने की जरूरत रह गई ? तो सुनो-(दपं से) अम्बपाली वैशाली-विजेता की राजनतंकी बनेगी, उसे राजगृह चलने को निमन्त्रण देने आया हूँ। अम्बपाली-और, अगर वह नहीं जाय ? अजातशत्र-अजातशत्र अगर-मगर नहीं जानता !