________________ अम्बपाली। एक दृश्य 283 अम्बपाली-सिर्फ एक बात कहना मैं भूल गई थी; क्षमा कीजिए तो निवेदन करूं। अजातशत्रु-तुम्हारे लिए हमेशा जमा है ! अम्बपाली-क्योंकि मैं नारी हूँ और सुन्दरी भी ? अजातशत्रु-तुम सुन्दरी हो, इसमें भी सचाई है। अम्बपाली-(ताने के स्वर में) और इसमें भी सचाई है कि मगध को धनुष और तलवार के साथ ही अपने महामन्त्री बस्सकार पर भी कम नाज नहीं। अजातशत्रु-(मुस्कुराते हुए) तुम वस्सकार पर नाराज हो लो, राजनतंकी, लेकिन मन्त्री वही है, जो विजय का पथ प्रशस्त करे। अम्बपाली-पाहे वह घृणित उपाय से हो ? अजातशत्रु -विजय का पथ हमेशा ही कीचड़ से भरा और रक्त से सना होता है / जो गन्दगी और खून से डरे, उसे सिर से मुकूट उतारकर हाथ में भिक्षापात्र लेना चाहिए / अम्बपाली-(जैसे निशाना लेकर) भगवान् बुद्ध ने मगधपति को यही शिक्षा दी थी ! क्यों ? अजातशत्रु-भगवान् ने कुछ दूसरी ही शिक्षा दी थी। (मुस्कुराते हुए) किन्तु, एक नन्ही-सी चीज ने सब बंटाढार कर दिया, राजनतंकी ! देखोगी वह चीज ? अम्बपाली-कैसी चीज? अजातशत्रु-(हाती-दांत पर बनी अम्बपाली की तस्वीर निकालकर उसके हाथ में देते हुए) यही है वह चीज! __ अम्बपाली—(आश्चर्यचकित) एँ, यह मैं ? मेरी...... अजातशत्रु-हाँ, तुम्हारी इस छोटी-सी तस्वीर ने हो फिर एक बार पीला कपड़ा उतार फेंकने को लाचार किया, एक बार फिर गंगाजल के धोये हाथों को खून से पीने को वाध्य किया। अम्बपाली--(भोंचक बनी) मगधपति ! अजातशत्रु-राजनतंकी, मगधपति ने जिन्दगी के इतने चढ़ाव-उतार देखे हैं कि उसने तय कर लिया था - शेष जीवन वह मृध्रकूट पर ध्यान लगाते राजगृह में बिता डालेगा; या राजपाट की झंझटों को दूर फेंक बोधिवृक्ष की छाया में शान्ति-सुख प्राप्त करते सदा के लिए आंख मूंद लेगा। किन्तु, उसके सारे मंसूबे हवा हो गये-उसे छल की शरण लेनी पड़ी, बल का प्रयोग करना पड़ा। किसके चलते ? क्यों ? इस छोटी-सी तस्वीर ने""(मुस्कुराता है)। अम्बपाली-तो आप राज्य के लिए वैशाली नहीं आये, सौन्दर्य के लिए वैशाली आये हैं। अजातशत्रु-तुमने बिलकुल ठीक कहा। अम्बपाली-सौन्दर्य, जो राज्य से भी क्षणिक है !