________________ अम्बपाली : एक दृश्य 281 चयनिका हाँ, आयें ! अम्बपाली-तू यही न सोच रही है कि कहाँ आज सारी वैशाली में मातम है, सदन है, हाहाकार है, और कहाँ मेरा यह शृङ्गार, यह प्रसाधन, यह उल्लास, यह हास!-क्यों ? चयनिका-हाँ, आयें ! अम्बपाली-लेकिन सोच, वैशाली में यह मातम क्यों है ? क्योंकि वह हार चुकी है। हारा आदमी अगर मातम न मनाये, गम में पड़ा आदमी न रोये, तो उसको छाती फट जाय, धुकधुकी बन्द हो जाय, वह मर जाय / वैशाली मरना नहीं चाहती है, इसलिए मातम मनाती है। लेकिन......"(वह चुप हो जाती है) चयनिका-'लेकिन क्या भद्रे ? (उसकी आँखों में भय की छाया) अम्बपाली- तूने सुना है, जब स्त्रियाँ सतो होने जाती हैं, तब शृङ्गार कर लेती हैं। जिसने चिता से लिपटना तय कर लिया, वह अन्तिम साज-सज्जा से अपने को क्यों वंचित रखे ? जब घरवाले छाती पीटते होते हैं, वह हँसती है, मुस्कुराती है, शृङ्गार करती है। लेकिन घरवाले रो-पीटकर मो श्मशान से जिन्दा लौटते हैं, वह हँसकर भी अपने को ज्योति में विलीन कर देती है ! .. चयनिका - मद्रे, मद्रे, यह आप क्या कह रही हैं ? (उसकी आँखें छल छला उठतो हैं) ___ अम्बपाली-बहुत ही सही कह रही हूँ। अम्बपाली ने किसी एक व्यक्ति पर नहीं, वैशाली पर अपने को उत्सर्ग किया था। आज जीती-जागती वैशाली मुर्दा लाथ-सी पड़ी है। इसे कोई नहीं बचा सका। अब अम्बपाली ने तय किया है, या तो इस लाथ में वह जान (केगी, या इसी के साथ जल मरेगी! चयनिका—आयें ! आयें ! (तलहटी से मुंह ढककर रोने लगती है) अम्बपाली कातर मत बन, चयनिके / अपने को अम्बपाली की योग्य अनुचरी सिद्ध कर ! देख, मेरा शृङ्गार अच्छा बना कि नहीं ? इच्छा होती है, जितने भी शृङ्गार और प्रसाधन के सामान हैं, सब आज लाद लूँ, ओढ़ लूँ ! (कुछ रुककर) जल्दी कर, मवषराज अजातशत्रु अभी यहां पधारने वाले हैं। चयनिका-मगधराज ! अजातशत्रु ! अम्बपाली-हाँ / महामात्य ने कहा था, जो डरता है, उसके नजदीक सबसे पहले भूत आता है ! वैशाली में पहली मेहरबानी उनकी मुझी पर हुई है। उन्होंने खबर भेजी है, आज अकेले-अकेले यहाँ पधारेंगे ! मगधपति का स्वागत भी तो साधारण साज-सज्जा से नहीं होना चाहिए / वह भी तो देख लें कि इस अलोकिक नगरी की राजनर्तकी कैसी है ? चयनिक- (कुछ घृणा, कुछ क्रोध से) मगधपति के स्वागत के लिए ?.......मद्रे.... अम्बपाली (हंसकर) कती क्यों है, बोल / आज का सब कहा-सुना माफ। चयनिका-(चुपचाप अम्बपाली का चेहरा धूर रही है) 36