________________ अम्बपाली : एक दृश्य' रामवृक्ष बेनीपुरी अम्बपाली का वसन्तोद्यान-सन्ध्या का समय बगीचे के बंगले के बरामदे से सटा एक ऊंचा मंच-मंच पर . सजी-सजाई फर्यउसपर बैठी अम्बपाली आइना सामने रखे शृङ्गार कर रही है मंच के आगे उद्यान का जो हिस्सा है, उसमें बेला, मोतिया, जूही आदि की पंक्तियां . कलियों से लदी-बीच में एक छोटा-सा नकली हौज जिसमें पालतू हंस का जोड़ा तैर रहा ___अम्बपालो की बगल में चयनिका खड़ी है-चयनिका कभी आसमान को देखती है, कभी अम्बपाली के चेहरे को-वह आश्चर्य और विषाद की पुतली बनी हुई है-अम्बपाली के चेहरे को पढ़ना उपके लिए मुश्किल हो रहा है-वह ठीक सन्ध्या का प्रतिरूप है, जिसमें दिनरात, हर्ष-विषाद का निर्णय करना कठिन हो रहा चयनिका की ओर देखकर अम्बपाली मुस्कुराती है--फिर उससे पूछती हैअम्बपाली-चुन्नी, देख तो, यह मेरा शृङ्गार कैसा उतरा? चयनिका- (नहीं बोलती है, सिर नीचा कर लेती है) अम्बपाली-बोल-बोल, शृङ्गार कैसा उत्तरा? . चयनिका-(फिर भी चुप है, सिर और नीचा कर लेती है) अम्बपाली-(प्यार भरे गुस्से में) नहीं बोलती ? तुझे बताना होगा चयनिके, कि आज का मेरा शृङ्गार कैसा उतरा ? | चयनिका-मैं कुछ नहीं समझ पाती, भद्रे ! अम्बपाली-तू कुछ नहीं समझ पाती और न समझ सकेगी। अम्बपालो की बातें समझ जाना आसान भी तो नहीं है, चुन्नी! 1. लेखक के 'अम्बपाली' नामक नाटक का एक अंश /