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________________ संस्कृत-महाकाव्यों और पुराणों में वैशाली प्रो० जगन्नाथराय शर्मा, एम० ए० 'वैशाली' या 'विशाला' एक प्राचीन नगरी है। पुराणों में इसके विशाल, विद्याला तथा वैशाली ये तीन नाम दिये गये हैं। इसकी प्राचीनता निर्विवाद है। पाटलिपुत्र नगर से तो यह अवश्य ही प्राचीन है। जहाँ वाल्मीकीय रामायण में विशाला के नाम से इसका और इसके संस्थापक तथा उसके वंशजों का वंशावली-वर्णन मिलता है, वहाँ पाटलिपुत्र नगर की चर्चा भी नहीं है। इससे स्पष्ट सिद्ध है कि यदि पाटलिपुत्र नगर गंगा के दक्षिण कूल पर उस समय तक बना होता तो रामचन्द्र उसके सम्बन्ध में भी विश्वामित्र से प्रश्न अवश्य करते / भगवान् रामचन्द्र के समय से लगभग 8-10 पीढ़ी पूर्व विशाला नगरी का निर्माण हो चुका था। यह भागवतपुराण और वाल्मीकीय रामायण दोनों ही के आधार पर सिद्ध है / पाटलिपुत्र नगर का निर्माण अजातशत्रु के समय में हुआ था, यह बात प्रसिद्ध है। अजातशत्रु बुद्धदेव का समकालीन था; अतः पाटलिपुत्र नगर का निर्माण केवल ढाई हजार वर्ष पूर्व हुआ था। किन्तु विशाला की प्राचीनता का पता लगाना कठिन है। उसके सम्बन्ध में हम सिर्फ यही कह सकते हैं कि उसका निर्माण आधुनिक ऐतिहासिकों की दृष्टि से प्रागैतिहासिक-काल में भगवान रामचन्द्र से भी आठ-दस पीढ़ी पूर्व हुआ था। उसकी प्राचीनता की गणना वर्षों में न कर युगों में ही करना उचित होगा। वैशाली की चर्चा वाल्मीकीय रामायण के आदिकाण्ड के ४५वें, ४६वें जोर ४७वं सर्गों में की गई है। 45 सगं में यह कहा गया है कि इसी स्थान पर देवों और दानवों मे समुद्रमन्थन की मन्त्रणा की थी। ४६वें सर्ग में दिति की उस तपस्या का वर्णन है जो उसने इन्द्र को मारनेवाले पुत्र की उत्पत्ति के लिए की थी। उसी सर्ग के अन्त में तथा ४७वें सर्ग के प्रारम्भ में इन्द्र के प्रयत्न से दिति की तपस्या का विफल होना वर्णित है / इसके पश्चात ४७वें सर्ग के अन्त में विशाला के निर्माण का इतिहास निम्नलिखित ढंग से दिया गया है 34
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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