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________________ 266 Homage to Vaisali इक्ष्वाकु की रानी अलम्बुषा के एक परम धार्मिक पुत्र हुआ, जिसका नाम था विशाल / उसी ने इस स्थान में विशालापुरी बनवाई।.... इसके अनन्तर विशाल से लेकर रामपल के समकालीन और उनका आतिथ्य करनेवाले विद्याला-नरेश सुमति तक की वंशावली गई है। वह इस प्रकार है (1) विद्याल, (2) हेमचन्द्र, (3) रुपन्द्र, (3) धूमाल, (5) सृञ्जय, (6) सहदेव, (7) कुशाश्व, (8) सोमदत्त, (9) काकुत्स्थ और (10) सुमति / विद्याल-परेशों के सम्बन्ध में महर्षि विश्वामित्र ने यह कहा है कि ये सब इक्वाकु की कृपा से दीर्घायु, महात्मा, वीर्यशाली और धार्मिक हुए। केवल चार पुराणों में वैशाली या विद्याला की पर्चा पाई जाती है। ये हैं-वाराह, नारदीय, मार्कण्डेय और श्रीमद्भागवत / वाराह पुराण के सातवें अध्याय में विशाल राजा के गया में पिण्डदान करने से उनके पितरों की मुक्ति कही गई है। उसी पुराण में ४८वें अध्याय में भी एक विशाल राजा का उल्लेख है, पर के काशी नरेश थे, वैशाली नरेश नहीं / नारदीय पुराण के उत्तर खण्ड के ४४वें अध्याय में भी विशालानरेश विद्यास की चर्चा की गई है और यह कहा गया है कि वे त्रेता युग में थे। पुत्रहीन होने के कारण पुत्र प्राप्ति के लिए उन्होंने पुरोहितों की राय से गया में पिण्डदान किया और अपने पिता, पितामह तथा प्रपितामह का नरक से उद्धार किया; किन्तु वहाँ विशाल के पिता का नाम 'सित' बतलाया गया है / सम्भव है इक्ष्वाकु का दूसरा नाम 'सित' रहा हो। मार्कण्डेय पुराण में सूर्यवंश-वर्णन के प्रसंग में विशाल राजा का नाम आया है। वहाँ अवीक्षित और वैशालिनी की कथा दी गई है और यह कहा गया है कि वैशालिनी विशालानरेश विशाल की कन्या थी। किन्तु श्रीमद्भागवत के अनुसार अवीक्षित विशाल से 11 पीढ़ी पहले था। विशाल ने ही वैशाली बसाई / तब फिर अवीक्षित का विवाह वैशालीनरेश की कन्या से कैसे हुआ ? अतः वैशालिनी की कथा कल्पित-सी प्रतीत होती है। मार्कण्डेय पुराण और श्रीमद्भागवत की वंशावलियां बहुत-कुछ एक-सी हैं। अन्तर केवल इतना ही है कि श्रीमद्भागवत में राजाओं का केवल नामोल्लेख मात्र है। किन्तु मार्कण्डेय पुराण में उनमें से प्रसिद्ध राजाओं का चरित्र विस्तार से वणित है। श्रीमद्भागवत के नवम स्कन्ध के प्रथम अध्याय में सूर्यवंश का वर्णन दिया हुआ है। इसके अनुसार वैवस्वतमनु और उसकी पत्नी श्रद्धा के दस पुत्र हुए। इनके नाम हैं-इक्ष्वाकु, 1. इक्बाकोस्तु नरव्याघ्र पुत्रः परमधार्मिकः / अलंबुषायामुत्पन्नो विशाल इति विश्रुतः / तेन चासीविह स्थाने विशालेति पुरी कृता // 11-02 // (सर्ग 47; वा० रामायण माविकाण्ड)। 2. इक्बाकोस्तु प्रसादेन सर्वे वैशालिका नृपाः / ___बोर्घायुषो महात्मानो वीर्यवन्तः सुषामिकाः // (वा० रामायण, सर्ग 47, श्लोक 18) 3. देखिए-बाराहपुराण, अध्याय 7, श्लो० 13-14 /
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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