________________ 104 Homage to Vaisali के प्रकाशन के लिये प्राकृत-ग्रन्थ-परिषद् की स्थापना हुई थी। मैं समझता हूँ उस परिषद् का कार्यक्षेत्र इतना विस्तृत नहीं कि वह प्रतावित अनुसन्धानशाला द्वारा किए जाने वाले कार्य का मार भी संभाल सके। प्राकृत-ग्रन्थ-परिषद् से मेरा सम्बन्ध सौभाग्य से उसी समय से है जब उसकी स्थापना हुई थी। प्राकृत भाषा में लिखित ग्रन्थों की खोज और टीका सहित उनके प्रकाशन के सम्बन्ध में मेरा सदा यह विचार रहा है कि यह कार्य इतिहास, साहित्य और संस्कृति की दृष्टि से अत्यन्त आवश्यक है। गत तीस-चालीस वर्षों से ही इतिहासवेत्ताओं और जैन आचार्यों का इस ओर विशेष ध्यान गया है, परन्तु यह कार्य नियमित रूप से हाल ही में आरम्भ किया जा सका है। प्राकृत अनुसन्धानशाला में जो उच्च कोटि का कार्य और अनुसन्धान किया जायेगा उससे प्राकृत-ग्रन्थ-परिषद् के कार्य को पथ-प्रदर्शन और हर प्रकार की सहायता प्राप्त होगी। आज वैशाली में बैठ कर यह कल्पना करना भी कठिन जान पड़ता है कि ढाई हजार वर्ष पहले यह नगरी एक सम्पन्न और प्रभावशाली गणराज्य की राजधानी थी। विभिन्न भाषाओं में लिखे ग्रन्थों, स्तूपों आदि पर अंकित शिलालेखों से ही इस धारणा की पुष्टि नहीं होती, बल्कि धीरे-धीरे जैसे लुप्ठ ग्रन्थों की खोज होती जा रही है . इस सम्बन्ध में हमारी जानकारी में वृद्धि होती जा रही है। वंशाली, जो भगवान महावीर की जन्मभूमि थी और सदियों तक उनके मतावलम्बियों तथा अनुयायियों की धार्मिक और साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र रही, आज जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हमारे सामने है। परन्तु ढाई हजार वर्ष की उथलपुथल के बाद भारत में फिर गणराज्य की स्थापना हुई है / आज इस यशस्वी भूमि के रजकण से हमें उत्प्रेरणा मिलती है। यह स्वाभाविक है कि प्राचीन इतिहास के जानकार वैशालो के प्रति श्रद्धांजलि भेंट करें और उन ऊँचे आदर्शों को जीवन में फिर से उतारने का प्रयत्न करें, जो बौद्ध तथा जैन विचारधारा के अनुसार वैशालीके नागरिकों का पथप्रदर्शन करते थे। वैशाली जिस राज्य की राजधानी थी वह यद्यपि देश भर में प्रभावशाली था पर बहुत बड़ा राज्य नहीं था / प्राचीन काल में वह देश के हृदय के समान था। यहाँ के गणराज्य की ख्याति चारों ओर फैली हुई थी और यहां की परम्पराओं तथा विचारधारा ने दूरस्थित प्रदेशों को प्रभावित किया था। यहाँ के जैन और बौद्ध आचार्य, जो अपनी भ्रमणशीलता के लिये विख्यात थे, देश के सभी भागों में घूमते थे और बुद्ध तथा महावीर के उपदेशों का प्रचार करते थे। भारत में ही नहीं, तिब्बत, नेपाल, ईरान, इंडोनेशिया, अफगानिस्तान आदि एशिया के दूसरे देशों से भी इन लोगों का सम्पर्क था। ___ उस समय देश में संस्कृत के अतिरिक्त दो और भाषायें प्रचलित थी, पालि और प्राकृत / महात्मा बुद्ध और उनके अनुयायियों ने अधिकतर पालि को प्रश्रय दिया, और महावीर स्वामी तथा उनके मतावलम्बियों ने प्राकृत को अपनाया। इन दोनों मतों के आचार्यों और अनुयायियों ने कालान्तर में जो कुछ लिखा वह अधिकतर पालि और प्राकृत में ही