________________ - - प्राकृत साहित्य और वैशाली' - राष्ट्रपति ग. राजेन्द्र प्रसाद यह बिहार का सौभाग्य है कि उसका अतीत प्राचीन भारत के इतिहास की पृष्ठभूमि है। इतिहासकालीन भारत के जीवन को समझने के लिये बिहार को समझना आवश्यक है। हमारे गौरवमय अतीत से सम्बन्धित जितने भी प्रमुख स्थल बिहार में हैं, वैशाली निस्सन्देह उनमें से एक है। यह नगरी लिच्छिवियों और वृज्जियों के गणराज्य की राजधानी थी। प्राचीनकाल में गणराज्य अथवा प्रजातन्त्र का यह स्थान प्रसिद्ध केन्द्र था। एक समय था जब इस भूमि में किसी राजा का शासन नहीं था, जनता के सात हजार से अधिक प्रतिनिधि सारा राज-काज चलाते थे और न्याय का विधान इतना सुन्दर था कि स्वयं भगवान बुद्ध ने अपने मुख से उसकी प्रशंसा की थी। निश्चय ही लोकशासन की सारी चेतना वहां मूर्तरूप से देखी जाती थी। इसके अतिरिक्त वैशाली भगवान महावीर की जन्मभूमि है और भगवान बुद्ध को भी बहुत प्रिय थी। स्वयं बुद्ध भगवान ने इस स्थान को बार-बार अपने चरण-रज देकर पावन बनाया था और इसकी सभा की देवताओं की समा से तुलना की थी। वैशाली से जो सद्विचारधारा प्रवाहित हुई उससे समस्त भारत ही नहीं, बल्कि एशिया के निकटवर्ती देश मी लाभान्वित हुए। इसलिए वैशाली का स्थान हमारे प्राचीन इतिहास में महत्वपूर्ण है। मैं समझता हूँ प्राकृत-अनुसन्धानबाला के लिए यह स्थान ही सबसे अधिक उपयुक्त है / हमारे सांस्कृतिक जीवन में और इतिहास के अध्ययन में अनुसन्धानशाला एक बहुत बड़े अभाव की पूत्ति करेगी। __ इस अनुसन्धानशाला में जैन-साहित्य और प्राकृत ग्रन्थों के सम्बन्ध में अनुसन्धान और अध्ययन की व्यवस्था होगी / संस्कृति की दृष्टि से ही नहीं, भारतीय इतिहास और चिन्तन की दृष्टि से भी, इस दिशा में प्रयास का विशेष महत्व है। चार वर्ष हुए दिल्ली में प्राकृत-ग्रन्थों 1. वैशाली में प्राकृत अनुसन्धालशाला का शिलान्यास करते समय राष्ट्रपपि जी का भावन . (23 अप्रैल 195660) /