________________ 378 अमृत महोत्सव स्मृति ग्रंथ परमार सम्राटों में विक्रमादित्य न्याय के लिए, मुंज वीरता के लिए और महाराजा भोज विद्या के लिए प्रसिद्ध थे। महाराजा भोज ने 'सरस्वती कंठाभरण' नाम का ग्रंथ भी लिखा था। इसी से प्रेरणा लेकर हेमचन्द्राचार्य ने 'सिद्ध हेम व्याकरण' की रचना की थी। सोलंकी वंश में सिद्धराज जयसिंह और मुंज और भोज हुए। परमार क्षत्रिय और जैन धर्म / महाराजा भोज के दरबार में महाकवि कालिदास की तरह एक प्रतिभाशाली कवि धनपाल का भी उच्च स्थान था। महाकवि धनपाल जैन थे और उन्होंने 'तिलक मंजरी' नाम का गद्य काव्य लिखा है, जिसमें विनिता नगरी और भगवान आदिनाथ की महिमा वर्णित है। यह संस्कृत साहित्य की एक महान और अद्वितीय कृति है। . धनपाल कवि की चमत्कारिक काव्यप्रतिभा एवं निर्भीकता से ग़जा भोज अत्यन्त प्रभावित थे। अन्य गजाओं की भांति वह भी शिकार प्रेमी थे। एक बार कवि धनपाल ने राजा भोज के बाण से घायल हिरणी की व्यथा का मार्मिक वर्णन सुनाया। जिसे सुनकर राजाका हृदय करुणाई हो उठा और मूक प्राणियों के लिए उनके मन में करुणा फूट पड़ी। तब से राजा भोज ने सदा के लिए शिकार खेलना छोड़ दिया। महाराजा भोज के उत्तराधिकारी लघुभोज हुए। उन्होंने 'जीवविचार' के . रचयिता श्रीशांतिसरि को 'वादिवेताल' की पदवी से विभूषित किया था। कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने जैसे सोलंकी कुमारपाल को परमाहंत बनाये थे वैसे ही वादिवेताल श्रीशांतिसूरि ने परमार लघुभोज को जैन धर्म के अनन्य प्रशंसक बनाये थे। परमार क्षत्रिय वंश की व्यापकता एक दोहा प्रचलित था : प्रथम साख परमार, सेस सीसौदा सिंगाला। रणथंभा राठौड, वंस चंवाल बचाला॥