________________ 377 एक लाख परमारों का उद्धार : की कुक्षि से लेकर त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में स्थापित किया। इस परमार क्षत्रिय वंश की प्राचीनता भगवान मुनि सुव्रत स्वामी के बाद इक्ष्वाकु वंश क्षत्रियों की अनेक शाखा-प्रशाखाओं में विभाजित हो गया। भगवान नेमिनाथ यदुवंश में उत्पन्न हुए। भगवान महावीर स्वामी ज्ञातृवंश में उत्पन्न हुए। भगवान महावीर स्वामी गया। जिनमें परमार, सोलंकी, सिसोदिया, राठौड आदि प्रमुख हैं। हिन्दी साहित्यकार और इतिहासज्ञ जयशंकर प्रसाद मानते हैं कि परमार, परिहार, चालुक्य या सोलंकी और चौहान वंश की उत्पत्ति आबू में अग्निकुल से हुई थी। आबू और उसके आसपास परमार क्षत्रियों का राज्य था। सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक नगरी चन्द्रावती उनकी प्रमुख राजधानी थी। उसके बाद किन्हीं अपरिहार्य कारणोंशों से परमार और सोलंकी आदि वंशों को आबू और चन्द्रावती नगरी छोड़कर गुजरात और मध्यप्रदेश में आना पड़ा। सोलंकी वंश गुजरात में पाटण के आसपास बस गया और परमार वंश मध्यप्रदेश के उज्जयिनी के आसपास बस गया। __ परमार. क्षत्रियों की वीरता क्षत्रियों की अनुपम वीरता के कारण क्षत्रियत्व वीरत्व का पर्यायवाची बन गया और जो वीर होता है वही स्वामी बनता है। कहा भी जाता है 'वीरभोग्या वसुंधरा', इस वसुंधरा का उपभोग केवल वीर ही कर सकता है। भारत वर्ष में सभी लोगों के कार्य विभाजित थे। क्षत्रियोंका कार्य देश की रक्षा और उसकी समृद्धि बढ़ाना था और यही उनका कर्तव्य भी। परमार क्षत्रियों ने भी अपने इस कर्तव्य का भलीभाँति निर्वहण किया। आबू से उज्जयिनी में बसने के बाद परमारों ने अपने भुजबल से सम्पूर्ण मध्यप्रदेश को अधीन बना लिया। उस समय मध्यप्रदेश की सीमाएं बडौदे से लेकर चम्बल घाटी तक थीं। परमारों ने अपनी राजधानी उज्जयिनी को बनाया। परमार राजा अद्वितीय वीर, न्यायप्रिय, साहित्य एवं कला के रसिक थे।