________________ अमृत महोत्सव स्मृति ग्रंथ 371 लग जाते हैं। क्रोध आता है। आखिर किसी भी परिस्थिति में बालक की इच्छा पूरी करनी ही पडती है। यदि चांद को तोडकर ला देने जैसी असंभव इच्छा हो तो उसे भी बालक को मनाने के लिए कृत्रिम तरीकों से कोई रीत अपनाकर मनाना पडता है। इस तरह वस्तु देखकर इच्छा का जगना एक प्रकार है। और दूसरा प्रकार है - पहले मन में इच्छा का जगना और बाद में वैसा करना। ___ क्या ईश्वर की इच्छा सामान्य मानव जैसी ही है? या भिन्न प्रकार की है? यदि मानव जैसी ही इच्छा हो तो ईश्वर की इच्छा से सष्टि का निर्माण हो सकता है तो फिर मानव की इच्छा से सृष्टि का निर्माण क्यों नहीं होता है? लेकिन * मानव की इच्छा से तो सृष्टि का निर्माण नहीं होता है यह जग प्रसिद्ध प्रत्यक्षसिद्ध है। अत: मानव जाति ने सृष्टि निर्माण की सारी बात ईश्वर पर डाल दी, और ईश्वर पर डालते समय उसकी इच्छा को केन्द्र बनाकर सबकुछ इच्छा पर डाल दिया है। भले चाहे वह इच्छा मानव के लिए बुद्धिगम्य हो या अगम्य। - दूसरे पक्ष में ईश्वर मानव से श्रेष्ठ कक्षा का विशिष्ट प्रकार का है। इसलिए संभव है कि ईश्वर की इच्छा मानवी इच्छा से अलग ही प्रकार की विशिष्ट - विलक्षण प्रकार की होगी। तो फिर वह इच्छा किस प्रकार की है। वस्तु देखकर जगनेवाले या वस्तू के पहले ही रहने वाली। या फिर ईश्वर के मन में ही इच्छा पहले से उत्पन्न हो जाती है और बाद में ईश्वर वैसी प्रवृत्ति करते हैं ? इच्छाएं अकसर अनेक प्रकार की क्रियाओं के साथ जुडी हुई हैं। करने की इच्छा, पाने की इच्छा, देखने की इच्छा, सुनने की, भोगने की इच्छा, बनने की, बनाने की इच्छा, इत्यादि अनन्त प्रकार की इच्छाएं होती हैं। इनमें से संसारी सामान्य मानवी को पाने की, भोगने की बनने की, देखने, सुनने आदि की प्रमुख इच्छाएं होती हैं। शेष-गौण कम रहती हैं। ईश्वर में किस प्रकार की इच्छा प्रधान रहती है। लगता है कि ईश्वर में करने की, बनाने की इच्छा ही प्रमुख रूप से रहती होगी। क्योंकि