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________________ अमृत महोत्सव स्मृति ग्रंथ . 349 का उपार्जन करेगा। पंजाब केसरी, कलिकाल कल्पतरु, अज्ञान तिमिर तरणी, युगदृष्टा, युगवीर आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज का शैक्षणिक दृष्टिकोण यही था। इसी मूल विभावना को लेकर उन्होंने स्थान स्थान पर शिक्षण संस्थाएँ स्थापित की। उन्हें हम जैन समाज के प्रखर शिक्षाशास्त्री कह सकते हैं। शिक्षा मनोविज्ञान से वे भलीभांति परिचित थे। केवल जैन समाज में ही नहीं; पर सम्पूर्ण देश में ऐसे शिक्षाशास्त्री नहीं मिलेंगे जो आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनों ज्ञानों के पक्षधर हों और बालकों को दोनों ज्ञान दिलाने के लिए विद्यालय स्थापित करवाए हो। दूसरे आचार्यों की तरह उन्होंने व्यावहारिक शिक्षा को कभी अस्वीकार्य नहीं किया। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक शिक्षा से रहित जो व्यावहारिक शिक्षा है वह अस्वीकार्य है परंतु जो धार्मिक शिक्षा और संस्कारों के साथ व्यावहारिक शिक्षा दी जाती है वह अस्वीकार्य उतना व्यावहारिक ज्ञान तो अनिवार्य है। भिखमंगा क्या धर्म करेगा? वह पेट का चिंतन करेगा या आत्मा का? गुरु वल्लभ ने अपने इसी शैक्षणिक दृष्टिकोण को दृष्टिगत रखते हुए आज से पचहत्तर वर्ष पहले श्री महावीर जैन विद्यालय स्थापित करने की प्रेरणा दी थी। उनकी शिक्षानीति क्या थी? इसे समझने के लिए श्री महावीर जैन विद्यालय का अध्ययन करना चाहिए। पचहत्तर वर्ष पहले जिस शैक्षणिक दृष्टिकोण का सूत्रपात गुरु वल्लभ ने किया था उसके .सुफल आज हम चख रहे हैं। नौ हजार व्यक्तियोंने अपने जीवन को संस्कारी, धार्मिक, नीतिमय, सेवापरायण और परोपकारी बनाया है। यह कोई सामान्य सिद्धि नहीं है। आज इसकी शाखाओं में संस्कारी व्यक्तियों का निर्माण किया जा रहा है। विद्यालयों के प्रमुख व्यक्ति यदि आध्यात्मिक संस्कारों की ओर ध्यान देकर कार्य करेंगे तो निश्चित ही वे आनेवाले भविष्य का सुखद निर्माण कर सकेंगे।
SR No.012087
Book TitleMahavir Jain Vidyalay Amrut Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakul Raval, C N Sanghvi
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1994
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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