________________ 348 गुरु वल्लभ का शैक्षणिक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं और जीने की कला सिखाते हैं। विद्या जीवन का शृंगार है। यही विद्या मनुष्य को मुक्ति तक ले जाती है; परंतु वह सद्विद्या होनी चाहिए। सा विद्या' या विमुक्तये। वही विद्या सच्ची है जो मनुष्य की मुक्ति का कारण बने। जो विद्या बंधन का कारण बने वह सच्ची विद्या नहीं कहला सकती। हमारे ज्ञानियों ने कहा है - ज्ञानं श्रेष्ठ-गुणो जीवे मोक्षमार्ग-प्रवर्तक :- अर्थात ज्ञान जीव का श्रेष्ठगुण है और वह मोक्षमार्ग का प्रवर्तक है। परंतु मोक्षमार्ग का प्रवर्तक वही ज्ञान हो सकता है जो सुज्ञान हो, आत्मिक ज्ञान हो। ___ मनुष्य के जीवन में धार्मिक ज्ञान की भी आवश्यकता है और व्यावहारिक ज्ञान की भी। धार्मिक ज्ञान उसकी आत्मा को समृद्ध करेगा, भीतर की शून्यता और रिक्तता को भरेगा और व्यावहारिक ज्ञान उसके जीवन-निर्वाह को चलाएगा। यद्यपि व्यावहारिक ज्ञान से आत्मा को कोई लाभ नहीं है, फिर भी वह जीवन के लिए आवश्यक है। बिना इसके जीवन-निर्वाह असंभव है। धार्मिक या आत्मिक ज्ञान मनुष्य के जीवन को संयमित बनाता है, अच्छे, शुभ संस्कारों से जीवन को ओतप्रोत करता है। उसे विवेकशील और विनयशील बनाता है। धार्मिक या आत्मिक ज्ञान रहित केवल व्यावहारिक या भौतिकज्ञान मनुष्य को कभी भी सुखी नहीं बना सकता . केवल भौतिक समृद्धि मनुष्य के जीवन को पतित कर सकती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यही हो रहा है। मनुष्य बाहर से समृद्ध हुआ है; पर भीतर से वह शून्यता से भरा हुआ है। भीतर से वह अपने आपको रिक्त अनुभव करता है। उसे पता नहीं है कि यह रिक्तता क्यों है और कैसे दूर की जा सकती है। उसकी भीतरी रिक्तता का एकमात्र कारण है उसका स्वयं के विषय में अज्ञान। उसकी आत्मा के विषय में उसका अज्ञान ही कारण है। वर्तमान में मनुष्य की भौतिक उन्नति उसके विनाश का कारण बन रही है। जो ज्ञान मनुष्य के विनाश का कारण बने उस ज्ञान से मनुष्य को क्या लाभ हो सकता है ? विनाशक व्यावहारिक ज्ञान को रोकने का एकमात्र उपाय है आध्यात्मिक ज्ञान का विकास। इस आध्यात्मिक ज्ञान को बचपन से ही देना प्रारंभ कर देना चाहिए। आध्यात्मिक संस्कारों से संस्कारित बालक ही भविष्य में भौतिक जगत में प्रविष्ट होकर स्वयं को बचा पाएगा। वह अपार भौतिक समृद्धि के प्रवाह में प्रवाहित होकर दुःखी नहीं बनेगा। वह पुण्यानुबंधी पुण्य