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________________ ज्ञान के तो वह विश्वकोश ही हैं। एक चलता-फिरता पुस्तकालय यदि उन्हें कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। किसी भी विषय पर चर्चा चलने पर वह जो विश्लेषण करते हैं और वह इतने अधिकारिक रूप से करते हैं कि आश्चर्य होता है कि सब प्रकार के विषयों का इतना ज्ञानार्जन उन्होंने कैसे किया। गांधी विचारधारा के व्याख्याता होने के साथ-साथ वह एक मौलिक विचारक भी हैं। बापू के प्रति पूरी श्रद्धा और भक्ति के बावजूद जब कभी उनसे विचार-भेद होता था तो काकासाहेब को अपने दृष्टिकोण को पूरे आत्म-विश्वास और साहस के साथ उनके सामने रखने में किसी तरह की हिचकिचाहट नहीं होती थी। गहन चिंतन से उपजी मान्यता और मान्यता के प्रति दृढ़ विश्वास द्वारा ही यह संभव हो सकता था। छोटे बच्चे से लेकर बड़े तक, कार्यकर्ता से लेकर नेता तक, सबसे वह स्नेह और सद्भावना का रिश्ता बहुत सरलता से जोड़ लेते हैं। बड़ी सहानुभूति से उनके जीवन और समस्याओं में मार्गदर्शन देते हैं। उनकी गहरी मानवीय संवेदना ही इसका एक विशेष कारण है। सारी उम्र उन्होंने सेवाकार्य किया। ईश्वर की कृपा है कि उन्होंने लम्बी आयु पायी और अबतक पूर्ण रूप से चेतन हैं। बापू का लक्ष्य था कि वे १२५ वर्ष तक जिएं। वे तो नहीं जी पाए, पर काकासाहेब, बापू के अनुयायी होने के नाते, इस अवधि को पूर्ण करें और हमें अपने ज्ञान और चिंतन का लाभ देते रहें, यही ईश्वर से कामना है। उनकी दो विशेषताएं फीरोजा वकील 00 हां, सच्चे मित्र ही हैं काकासाहेब ; हरेक के, जो भी उनके संपर्क में आते हैं; उन सबके-छोटे या बड़े, युवा या वृद्ध, ज्ञानी या मूढ़ ! बहुत वर्ष पहले जब मैं काकासाहेब से मिली, मैं अत्यन्त साधारण शिक्षिका थी, एक नगण्य-सी प्राणी, जिसको भारत के कुछ सर्वोत्तम, विशिष्ट महापुरुषों के दर्शन और परिचय का परम सौभाग्य मिला हुआ था। उन्हीं में थे काकासाहेब । हमने तुरन्त एक-दूसरे को अपना लिया। उनके अन्दर वे सब विशेषताएं हैं, जो मेरे हृदय में उनके लिए प्रेम उत्पन्न करती हैं। उनकी एक बहुत लम्बी सूची है, जिनमें प्रमुख है गहरी करुणा और हृदय की स्नेह-भरी उदारता। वह लुप्त प्राय सच्चे, जन्म-जात सज्जनों के वर्ग के प्रतिनिधि हैं। लेकिन उनके स्वभाव के जो दो पहल मुझे सबसे अधिक आकर्षित करते हैं, वे हैं-पारसियों के लिए उनकी कद्रदानी और जानवरों के लिए उनका गहरा प्रेम । .. बम्बई महाराष्ट्र में हो या गुजरात में, यह वाद जब चल रहा था तब एक मित्र ने काकासाहेब से पूछा, "बम्बई किसको दी जाये ?" उन्होंने तुरन्त उत्तर दिया, "पारसियों को यह नगर क्यों न दिया जाये ? पारसियों ने ही तो इसको बनाया है, इसलिए उनका अधिकार है और वे ही उत्तम तरह से उसकी देखभाल करेंगे।" __ काकासाहेब के लेख जिन्होंने पढ़े हैं, वे उनके पशु-प्रेम को बराबर समझ सकते हैं। उनकी इस विशे ६४ / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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