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________________ स्वातंत्र्य-प्राप्ति में ही जीवन-‍ अमृतलाल नाणावटी 00 आचार्य श्री काकासाहेब कालेलकर १ दिसम्बर १९७६ को ६४ वर्ष पूरे करके ६५ वें वर्ष में प्रवेश करेंगे । उनके जीवन से जो लोग परिचित हैं, वे सब जानते हैं, ठेठ कालेज के जीवन में उन्होंने और उनके जैसे आचार्य जीवतराम कृपालानी, पं० सुन्दरलालजी आदि दोस्तों ने हिन्दुस्तान को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करने का प्रण किया था । पू० काकासाहेब अपने समय के भारत के महान पुरुषों के निकट के परिचय में आये । लोकमान्य तिलक के साथ उन्होंने काम किया। गंगाधरराव देशपांडे, बैरिस्टर केशवराव देशपांडे आदि गुरुजनों के सहवास में आकर देशोन्नति के काम किये । शान्तिनिकेतन में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के साथ भी काम किया और वहीं कर्मवीर मोहनदास कर्मचन्द गांधी से मिले और उनके बन गये । -साफल्य बाद में महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में पहुंचे। वे स्वभाव से शिक्षाशास्त्री हैं । इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा का काम वहां उन्होंने संभाला और गुजरात को 'सा' विद्या या विमुक्तये' का मंत्र दिया । जब गुजरात विद्यापीठ का काम उन्होंने संभाला और बापू ने १९३० में १२ मार्च को ऐतिहासिक 'दांडीकूच' किया तब काकासाहेब ने विद्यापीठ को भी उस अद्वितीय स्वातंत्र्य संग्राम में होम दिया। बापू अपने दांडीकूच जब विद्यापीठ के रास्ते से गुजरे तब काकासाहेब ने उनको प्रणाम किया; उसका मैं साक्षी था। बापू ने साहेब की पीठ पर जोर से हाथ ठोककर आशीर्वाद दिया। उस धन्यता का अनुभव करते हुए काकासाहेब ने मुझसे कहा, "आजे बापूजीए मारी पीठ पर जोर थी धब्बो लगावी आशीर्वाद आप्यो ।” बापू ने जितने भी सत्याग्रह के आंदोलन किये, उनमें जेल जाने का एक भी मौका काकासाहेब ने नहीं छोड़ा। इन जेल यात्राओं का वर्णन लिखकर उन्होंने गुजराती सहित्य की जो सेवा की है वह अत्यंत लोकप्रिय हुई है। १४ अगस्त १९४७ को हम असम जा रहे थे । मध्यरात्रि को हम पार्वतीपुर स्टेशन पर थे। उस समय सब रेलगाड़ियों के इंजिनों ने अपनी सीटियां बजाकर आजादी की घोषणा की और मैं अपने डिब्बे में से साहेब के डिब्बे के पास 'आज मिल सब गीत गाओ' गाता हुआ पहुंचा। उन्होंने मुझे बुलाया, अपने पास बिठाया। सुबह की आश्रम - प्रार्थना हमने की और 'आज मिल सब गीत गाओ' भजन मैंने गाया । प्रार्थना के अंत में काकासाहेब ने मुझे और सरोज बहन को अपनी जगह बैठे-बैठे अपनी दोनों बांहों में एक साथ लेकर आलिंगन किया और धन्यता का जो अनुभव किया, उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जाता । काकासाहेब ने इकसठ साल की उम्र में गांधीजी के पुण्य प्रयत्नों से स्वातंत्र्य सूर्य का दर्शन किया और उनके जीवन का एक बड़ा अध्याय यहीं समाप्त हुआ। हम जैसे नवयुवकों ने, जिन्होंने इसी स्वराज्य के लिए अपना जीवन अर्पण किया था उन्होंने, इकतालीस साल की उम्र में, स्वराज्य के सूर्य के दर्शन किये और उनके जीवन का भी एक बड़ा अध्याय यहीं पूरा हुआ । जीवन शांत है और अनन्त भी है। गीताजी में कहा है "जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु: ।" और यह भी कहा है, "बहूनि व्यतीतानी जन्मानि तप चार्जुन ।" मनुष्य को पता नहीं चलता कि इसी जन्म में उसका मोक्ष है या और भी जन्म उसको लेने हैं। जैन तीर्थंकरों की बात अलग है, जिन्हें केवली ज्ञान प्राप्त होता है, और उसी जन्म में निर्वाण प्राप्त करते हैं । भारत के संविधान ने हिन्दी को सरकारी भाषा घोषित किया और उसे भारत की मिली-जुली संस्कृति ६२ / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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