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समन्वय की जीवन्त प्रतिमूर्ति
ओमप्रकाश लिखा
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में डुबकी
काकासाहेब का सारा जीवन समाज और राष्ट्र सेवा का जीवन रहा। उनके सेवा क्षेत्र के गहरे समुद्र लगाने पर समाज तथा राष्ट्र सेवकों को प्रेरणादायक सामग्री के अनमोल मोती, हीरे, जवाहरात मिल सकते हैं । उनकी सेवाओं का एक प्रेरणादायक प्रसंग है हिन्दी प्रचार । उनकी प्रेरणा पाकर न जाने कितने हिन्दी प्रेमी कार्यकर्ताओं ने अहिन्दी भाषी प्रदेशों में जाकर जीवन पर्यन्त सेवा कार्य किया जिसके परिणाम स्वरूप राष्ट्र भाषा के प्रचार-प्रसार को गति मिली। वर्धा में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति का निर्माण हुआ जिसकी शाखाएं सारे भारतवर्ष में फैल गयीं । काकासाहेब अपने गुरु गांधीजी के समान भारत की सामाजिक संस्कृति की वाहक राष्ट्रभाषा हिन्दुस्तानी के समर्थक रहे । राष्ट्रभाषा हिन्दुस्तानी की उन्होंने ४५ वर्ष तक सेवा की।
काकासाहेब के हिन्दुस्तानी भाषा में मानवीय जीवन के हर पहलू पर अनेक अनमोल ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। उनकी लेख -सामग्री इतनी बिखरी पड़ी है कि उस प्रखर साहित्य- धन राशि से कई अमूल्य ग्रंथ और तैयार किये जा सकते हैं । उनकी लेख -सामग्री अधिकतर सृजनात्मक आन्तरिक प्रेरणा के फलस्वरूप ही है 1
शिक्षा के क्षेत्र में काकासाहेब की अमूल्य सेवाओं को भुलाया नहीं जा सकता। वह बहुत बड़े शिक्षाशास्त्री हैं। गुजराती विद्यापीठ और हिन्दुस्तानी तालीमी संघ ने उनसे शिक्षा दर्शन का आधार लेकर शिक्षा • के क्षेत्र में विशेष स्थान प्राप्त किया। प्रकृति और समाज की एकरूपता का भान ही उनके शिक्षाशास्त्र का एकमात्र सिद्धांत था । उन्होंने बालवाड़ी की शुरुआत से लेकर एम० ए० की कक्षाओं के लिये सर्वोत्तम ग्रंथरचना की। जो आज भी स्कूलों और कालिजों में कोर्स या सहायक पुस्तकों के रूप में विद्यार्थियों को पढ़ाई जाती हैं। शिक्षाशास्त्री के नाते काकासाहेब का सेवा कार्य सदा के लिये अमर माना जायेगा । कारण, उन्होंने जो कुछ शिक्षार्थं लिखा या कहा वह न केवल साहित्यिक गुण से परिपूर्ण रहा बल्कि जीवन आचरण से भी परिपुष्ट रहा ।
बीसवीं सदी के पहले दशक में बालगंगाधर तिलक, बिपिनचन्द्र पाल और लाला लाजपतराय का— लाल, बाल और पाल का बोलबाला था। इन दिनों स्वदेशी, बंग-भंग और भूमि कर न देने के आन्दोलन जोरों पर थे । काकासाहेब उनसे बड़े प्रभावित हुए और उन्होंने १६०५ से अपने कालेज जीवन से अपने आपको राष्ट्र सेवा के लिये समर्पित कर दिया । स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी के नाते उनको कई बार कारागार के दुःख भी झेलने पड़े । परन्तु उन्होंने उन्हें प्रसाद रूप में प्रसन्तापूर्वक सहन किया । यरवदा जेल में काकासाहेब गांधी जी के सहवास में रहे। गांधीजी का यह आग्रह था कि जेल निवास के समय में कम से कम खर्च हो और सादगी से रहा जाये । काकासाहेब ने भी जेल में गांधीजी के इस आदर्श को पूरी तरह निभाया। काकासाहेब बेलगाम, हैदराबाद और सिंध की जेलों में भी रहे। वहां भी उसी नीति का पालन करते रहे । काकाजी इन दिनों नियमित रूप से डायरी लिखा करते थे । यह उनकी विशेषता थी ।
काकासाहेब को संस्कृति के परिव्राजक, संस्कृति के अखण्ड दीप, समन्वय-संस्कृति के प्रतीक, विश्वसंस्कृति के सन्देशवाहक आदि नामों से याद किया जाता है । काकासाहेब के समूचे जीवन- नेतृत्व से जिसकी पुष्टि होती है । गांधी विचार को वे एक विकासशील दर्शन मानते हैं । इसे हम समझें । समझ में आ जाये तो जीवन के आचरण में लायें । मतभेद होने पर उसकी हम आलोचना अवश्य करें, लेकिन वैसा करते समय
व्यक्तित्व : संस्मरण / ५६