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________________ के लिए गांधीजी को समर्पित कर दिया। उन्होंने न केवल अपना जीवन समर्पित किया, बल्कि अपनी आस्थाएं बदलीं, अपना जीवन-पथ बदला और अपनी जीवन-पद्धति भी बदली। गहरे सोच-विचार के बाद वे गांधीजी के आजीवन-साथी बने। अपने परिवार के साथ वे उनके आश्रम में रहने लगे। गांधीजी की परिभाषा वाले व्रतधारी आश्रमवासियों में उनकी गिनती होने लगी। शीघ्र ही आश्रम-परिवार के बीच उनका अपना एक स्थान बन गया। इस तरह श्री दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर सत्याग्रह-आश्रम, साबरमती के आश्रम-परिवार के लिए 'काका कालेलकर' बन गए और आगे चलकर सारे देश में उनका यही नाम व्यापक और सुस्थिर हो गया। वे न केवल आश्रमवासियों के, बल्कि सारे देश के और सारी दुनिया के काका बन गए ! खद गांधीजी भी उन्हें 'काका' ही कहने लगे। गांधी-युग में जिनके मूल नाम लुप्त हुए और उपनाम व्यापक रूप से प्रचलित हो गए, उनमें गांधीजी का नाम सबसे आगे रहा। श्रीमोहनदास करमचन्द गांधी 'महात्मा गांधी' और 'बापू' के नाम से प्रसिद्ध हो गए। श्री कालेलकर 'काका कालेलकर',श्री फड़के 'मामा फड़के', श्री विनायक नरहरिभावे 'विनोबा', श्री शंकर अम्बक धर्माधिकारी 'दादा धर्माधिकारी', और श्री अनन्त विष्णु सहस्रबुद्धे 'अण्णा सहस्रबुद्धे' के नाम से पहले गांधी-परिवार में और फिर पूरे देश में पहचाने जाने लगे। नामों का यह परिवर्तन भी गांधी-युग के उस समय के चिन्तन और आचरण की एक विशेष देन रही। जब गांधीजी ने अपने पारिवारिक जीवन को आश्रम जीवन में बदला और आश्रम का अपना एक विशाल परिवार बनाया, तो उसमें आत्मीयता और पारिवारिकता का पुट चढ़ाने के लिए उन्हीं की प्रेरणा से पारिवारिक सम्बन्धों को व्यापक बनानेवाला नाम-परिवर्तन का यह सिलसिला शुरू हुआ और धीरे-धीरे यह सारे देश में फैल गया। जहां-जहां भी गांधीजी के साबरमतीआश्रम से प्रेरणा पाकर राष्ट्र-कार्य के लिए आश्रमों की स्थापना हुई, वहां-वहां लगभग सभी स्थानों में नामों के साथ यह पारिवारिकता जुड़ती चली गई। सन् १९१७-१८ के दिनों में साबरमती के सत्याग्रह आश्रम में आश्रमवासी की तरह रहने वाले भाइयों, बहनों और बच्चों की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि आश्रम के परिवारों में रहने वाले बालकों और किशोरों की पढ़ाई का प्रश्न एक ज्वलन्त प्रश्न बन गया था। इस प्रश्न को हल करने के लिए आश्रम में राष्ट्रीय शाला का श्रीगणेश किया गया। इस राष्ट्रीय शाला में शिक्षक का काम करने वालों में सर्वश्री विनोबाभावे, काका कालेलकर, किशोरलाल मशरूवाला, जुगतराम दवे, नरहरि पारीख, छगनलाल जोशी, रमणीकलाल मोदीजैसे उन दिनों के प्रमुख आश्रमवासी थे। स्वयं गांधीजी भी बीच-बीच में राष्ट्रीय शाला के विद्यार्थियों को पढ़ाने-सिखाने का काम करते रहते थे। जब १९१९-२० के जमाने में गांधीजी ने अपने असहयोग आन्दोलन के साथ स्कूलों, कॉलेजों, अदालतों आदि के बहिष्कार का राष्ट्रव्यापी आन्दोलन चलाया, तो उससे प्रभावित और प्रेरित होकर जो नौजवान विद्यार्थी स्कूल और कॉलेज की अपनी पढ़ाई छोड़कर असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित हो गए, उनकी अधूरी पढ़ाई को राष्ट्रीय शिक्षा की दृष्टि से पूरा करने के लिए सारे देश में जगह-जगह राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना की गई और उच्च शिक्षा के लिए विद्यापीठ खोले गए। गांधीजी ने 'गुजरातविद्यापीठ' के नाम से एक विद्यापीठ की स्थापना अहमदाबाद में की। आगे चलकर बनारस में काशी-विद्यापीठ की, पटना में बिहार-विद्यापीठ की और दिल्ली में जामिया मिलिया के नाम से मुस्लिम-विद्यापीठ की स्थापना हुई । आचार्य गिडवानी, आचार्य कृपालानी, आचार्य काका कालेलकर-जैसे उस समय के धुरन्धर माने जाने वाले राष्ट्रीय चेतना से ओतप्रोत अध्यापकों ने गुजरात-विद्यापीठ को अपनी सेवाएं देकर उसे राष्ट्रीय शिक्षा की एक सजीव प्रयोगशाला का रूप दिया। श्री काका कालेलकर ने वर्षों तक इस विद्यापीठ में रहकर इसके आचार्य के नाते राष्ट्रीय शिक्षा के ५४ / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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