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पिता जमनालालजी को जुहू से जून १९२४ में बापूजी ने एक पत्र में लिखा : "तुम्हारे प्रेम के वश होकर मैं पिता बना हूं। ईश्वर मुझे इस योग्य बनाये।"
काकासाहेब का ऐसा पारिवारिक-स्नेह प्रेम और प्रोत्साहन हमें सदा मिला है और पिता-पितामह की अनन्यता का सदा स्पष्ट-दर्शन वे हमें कराते रहे हैं। इससे हमारा जीवन शुभ-स्मरणों से सदा सम्पन्न रहा है। इतना ही नहीं, राष्ट्रपिता की राष्ट्रव्यापी पारिवारिकता का परिचय भी वे समय-समय पर प्रस्तुत करते रहे हैं। इस दष्टि से 'एक हृदय हो भारत जननी' का जो अखिल भारतीय राष्ट्रभाषा समिति का ध्यानमंत्र है, वह पू० काकासाहेब के द्वारा सहज सिद्ध होता है।
ऐसी श्रद्धाभरी भावना के साथ श्रद्धायुक्त वन्दन !
ওলী ছাতন ননী লিনা मार्गरेट और विलियम बेली 00 काकासाहेब के लिए हमारे दिल में उस समय प्रेम उत्पन्न हुआ जब हमने उनके पुत्र बाल के मुख से बार-बार उनके बारे में सुना। कॉर्नेल युनिवर्सिटी में डॉक्टरेट लेने के बाद बाल अनेक बार हमारे घर विलियमस्पॉर्ट आते थे। अपने पिता के प्रति बाल की गहरी निष्ठा और आदर-युक्त प्यार की हमारे मन में बड़ी सराहना थी. और इस तरह बाल के कारण काकासाहेब के प्रति हमारा प्रेम बढने लगा।
हमारे मार्ग अलग हए, फिर भी बाल का स्थान हमारे हृदय में बना रहा, और जब हमने विश्व की पहली यात्रा की तब भारत जाने की उत्कंठा हुई। हम दिल्ली जुलाई में पहुंचे, तब बाल तो चल बसे थे; किन्तु उनके बड़े भाई सतीश ने हमारा स्वागत किया। हमें सुनकर समाधान हुआ कि काकासाहेब का स्वास्थ्य ठीक चल रहा था। हमने बंबई जाने पर काकासाहेब से मिलने की इच्छा व्यक्त की।
बंबई में नानावटी के घर पर जब हम पहुंचे तब सरोज ने हमारा स्नेहपूर्ण स्वागत किया। काकासाहेब के शान्त गौरव से और आत्मीयतापूर्ण स्वागत से हम बड़े प्रभावित हुए। बाल के साथ की मैत्री के अपने अनुभव और विलियमस्पॉर्ट में बाल के अन्य मित्रों के संस्मरण हमने सुनाये। काकासाहेब ने ध्यानपूर्वक उन्हें सुना।
बाद में भारत की दो यात्राओं में तो काकासाहेब के वात्सल्यमय व्यक्तित्व ने मानो हम पर जादू ही कर दिया। अपने देश के इतिहास में बतायी हुई काकासाहेब की असाधारण समर्पित निष्ठा और उनकी अनेकविध उपलब्धियां देखकर हम विस्मित रह गये। अपने काम पर गौरव करने का उन्हें पूरा अधिकार है. किन्तु उनकी शान्त-तेजस्वी विनम्रता से वह सबके प्यारे बन जाते हैं।
में भारत के अनेक समाजों और अनेक व्यक्तियों से मिलने का अवसर प्राप्त हआ। हमेशा हम सनते रहते हैं, "काकासाहेब को तो हम पहचानते हैं।"
हम आशा करते हैं कि हम जल्दी ही पुनः भारत-यात्रा करेंगे और स्वजनों से पुनर्मिलन का आनन्द प्राप्त करेंगे।
व्यक्तित्व : संस्मरण | ३९