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'हिमालय का प्रवास', 'उत्तर की दीवारें' और 'नवजीवन' के लेख पढ़ने से मेरे मन में काकासाहेब के प्रति आदरभाव उत्पन्न हुआ था। वह आश्रम में आये। उनसे परिचय करने की बहुत इच्छा थी, किन्तु यह हो कैसे ? मैंने श्री सुरेन्द्रजी से अपनी इच्छा प्रकट की कि मुझे काकासाहेब से मिलना है । सुरेन्द्रजी ने कहा कि Terra को पौष्टिक और सात्त्विक आहार की बहुत जरूरत है। उन्हें खिलाने की जिम्मेदारी ले लीजिये । आपके घर रोज भोजन करने आयेंगे तो परिचय सरलता से हो जायेगा ।
बापूजी से कहा कि यदि काकासाहेब मेरे यहां खाना खाने आयें तो वह काम मैं खुशी से करने को तैयार हूं । बापूजी बहुत प्रसन्न हुए और काकासाहेब से कहा कि आप गंगा बेन के घर भोजन के लिए जाया कीजिये ।
इस तरह काकासाहेब मेरे घर आने लगे। सुबह नाश्ते में मैं उनको हलुआ और दूध देती थी। भोजन में रोटी, मक्खन और सब्जी । सादा और पौष्टिक आहार देती रही। थोड़े दिन यह क्रम चला और उनकी तबीयत बहुत सुधर गयी। बाद में वह कुछ दिन बोरढी गये। वहां भी मैं साथ गयी। कुछ समय रही। जब मैं बोचा सण रहने आ गयी तब वह समय-समय पर बोचासण आते रहे। वे मुझे सत्संग का लाभ देते रहे। फिर तो काकासाहेब के साथ का संबंध गहरा ही बनता चला गया ।
Satara दीर्घायु हों, यही प्रार्थना करती हूं | 0
१. १०२ वर्ष की गंगाबेन बापूजी के आश्रम में रहीं । अत्यंत सेवाभावी, प्रेमल । गो और पीड़ित जनों की सेवा । बालकों से प्यार । निडर स्वातंव्य सेनानी, सत्याग्रही और सबकी प्यारी । —सम्पा०
उनके जीवन के विभिन्न पहलू
लक्ष्मी देवदास गांधी
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उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में भारत माता ने जिन सुपुत्रों को जन्म दिया था उनमें आचार्य काका कालेलकर अग्रगण्य हैं। बापूजी के पथ के अनुयायियों में अब तीन आचार्य रह गये हैं : १. आचार्य काकासाहेब २. आचार्य कृपालानी और ३. आचार्य विनोबा भावे, जो सबसे छोटे हैं ।
काकासाहेब के इस विशिष्ट जन्मदिन पर हम उन्हें नम्रतापूर्वक प्रणाम करते हैं और उनसे यह आशीर्वाद चाहते हैं कि हमारा इस देश का भविष्य उज्ज्वल रहे और उनकी वर्षों की शिक्षा, जो लोगों ने पाई है, व्यर्थं न जाय ।
शायद १९२३ में मेरे पिताजी ( पूज्य राजगोपालाचार्य जी) ने मेरा और मेरे भाई का काकासाहेब से परिचय कराया था, साबरमती आश्रम में । काकासाहेब का घर, किशोरलालभाई का घर, और महादेवभाई का घर, ये सब पास-पास थे । तब काकासाहेब की धर्मपत्नी भी जीवित थीं, जिन्हें हम लोग 'काकी' कहकर पुकारते थे । बहुत वात्यल्यमयी थीं वह । महादेवभाई कई बार हमें काकासाहेब के घर ले जाते थे । काकी हमें हमेशा प्यार से रुचिकर व्यंजन खिलाया करती थीं । उनके पुत्र बाल कालेलकर हमारे समवयस्क थे ।
व्यक्तित्व : संस्मरण ३५