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________________ "गुरु को शिष्य का आदर करना चाहिए - ऐसों का — जिनके पास सुनने को कान हैं ।" काकासाहेब के मुख से भगवान यीशु के ये शब्द सुनकर उनमें हमें नवीन अर्थ दिखाई दिया। हम इन शब्दों को मानो नये हृदय से ग्रहण कर रहे थे - जिस हृदय को काकासाहेब अपने प्रेमपूर्ण प्रेममय स्पर्श से हमारे अन्दर जाग्रत कर रहे थे। और हमारे पिता गुरु का आखिरी और सबसे प्यारा संस्मरण सुनिये भारत से जब हम हवाई अड्डे जाने के लिए निकल रहे थे, हृदय में और आंखों में आंसू भरकर विदाई ले रहे थे, तब उनके चरण छूकर मैंने कहा,“जाते-जाते एक बात आपको कहना चाहती हूं। हमारे देश में जब हम किसी को बहुत प्यार करते हैं तब बांह फैलाकर उनसे हृदय से हृदय लगाकर मिलते हैं आपके देश में यह हो नहीं सकता, इसका मुझे यह खेद है ...।” I काकासाहेब हंस पड़े, तनिक मुश्किल से पलंग पर से उठ खड़े हुए और अपनी बांहें फैलाकर मुझे और क्लाउस दोनों को अपने हृदय से लगा लिया -- एक दीर्घ क्षण के लिए हमें स्वर्ग की पूर्वानुभूति कराने को पर्याप्त था । O अनुग्रह का भाजन वालजीभाई देसाई OO श्री काकासाहेब मेरे बड़े भाई के समान हैं। मुझ पर उनके स्नेह के कारण, जब-जब आवश्यकता हुई, मैं निःसंकोच उनको तकलीफ देता रहा हूं। जैसे गांधीजी के 'दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास' का अंग्रेजी करने का काम मेरे पास आया तब उस ग्रंथ की प्रस्तावना का अंग्रेजी अनुवाद उन्होंने और मैंने साथ बैठकर किया था । 'अखिल भारत गोरक्षा मंडल' का विधान तैयार करने में भी मुझे उनकी सहायता मिली थी । अपनी पुस्तकें मैं उनको पड़ने के लिए देता हूं, ताकि पढ़कर अपनी समीक्षा वह विस्तार से लिख दें। ऐसे अनेक प्रकार से मैं उनके अनुग्रह का भाजन बना हूं। O मेरा प्रथम परिचय गंगाबेन बैद OO आश्रम में बुला लिया। बापूजी ने कहा - आश्रम की हवा अच्छी है काकासाहेब के खानपान आदि सबकी व्यवस्था शामलभाई करते थे। गये थे। पूज्य काकासाहेब बीमारी से उठे थे। हवाबदल के लिए आश्रम के बाहर गये। कुछ दिन बाद बापूजी ने उन्हें । यहीं रहकर आराम करो । उन दिनों काकासाहेब बहुत कमजोर अशक्त हो ३४ / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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