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बलिदान दे सकते हैं और कितने कष्ट सह सकते हैं ?" इसका कोई उत्तर न था ।
नवयुवकों की एक अन्य सभा में उन्होंने यह विस्तृत रूप से समझाया कि नाराज हरिजनों तथा सामाजिक क्रांतिकारियों द्वारा हिन्दू मन्दिरों में बलपूर्वक प्रवेश करना तथा सहमति और मैत्रीपूर्ण ढंग से प्रवेश करना, इसमें क्या अन्तर है। उन्होंने कहा कि पहली क्रिया वासना तथा दूसरी क्रिया प्रेम के समान है । अधीर नवयुवकों को उन्होंने समझाया कि वे वासना अथवा प्रेम के रास्तों के बीच पसंदगी करने के लिए आप स्वतन्त्र हैं। युवकगण चुनौती को समझ गये और उन्होंने गांधीजी की पद्धति को ही अपनाया ।
काकासाहेब एक असाधारण उच्चकोटि के बुद्धिजीवी हैं, परन्तु उनकी बुद्धि में एक अत्यन्त गहन कलात्मक संवेदनशीलता भी अनुस्यूत है। उनकी बुद्धि समूचे संसार के इतिहास तथा दर्शन और इसके अतिरिक्त कविता, नाटक तथा निर्माण शिल्प कला के क्षेत्रों में हुई उपलब्धियों के ज्ञान की पृष्ठभूमि पर कार्य करती है । केवल एक ही और पुरुष है, जिनकी इस सम्बन्ध में काकासाहेब से तुलना कर सकता हूं। वह हैं राजाजी। मेरा अभिप्राय स्वर्गीय राजगोपालाचार्य से है, जो इस प्यारे नाम से समस्त भारत में जाने जाते थे। राजाजी और काकासाहेब के बीच हुई चर्चाओं के अनेकानेक संस्मरण मेरे पास हैं। राजाजी सदैव काकासाहेब के साथ वार्तालाप करने में प्रसन्नता अनुभव करते थे और काकासाहेब राजाजी के चरित्र और संस्कृति के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेमादर रखते थे। कई ऐसे चित्र उपलब्ध होंगे, जो राजाजी और काकासाहेब को एकसाथ दर्शाते हैं। ऐसे चित्रों को एकत्र करके अभिनन्दन ग्रन्थ में प्रकाशित करना चाहिए। काकासाहेब एक हिन्दू हैं, परन्तु गांधीजी की भांति उनका हिन्दू धर्म आकाश के समान विशाल और समुद्र के समान गहरा है । 'सर्व धर्म समानत्व' का ध्येय उनके लिए अति प्रिय है तथा दिल्ली में स्थित उनके निवास स्थान 'सन्निधि में लगातार अन्तधार्मिक सभाएं होती रहती हैं, जिनमें काकासाहेब की आवाज सर्वधर्मोों की एकता और आवश्यक मूल्यों में समानता की आवाज का उद्घोष करती रहती है ।
सर्वोच्च साहित्यिक कलाकार होने के अनन्तर उनको अमर कीर्ति प्राप्त होगी, सर्व-धर्म-समन्वय की उनकी अटल निष्ठा के लिए।
संसार की विभिन्न धार्मिक परम्पराओं में उन्होंने हर किस्म के अंधविश्वास को नकारा है । विभिन्न धर्मों के आंतरिक मूल्यों को उन्होंने उभारा है और साबित किया है कि वह आपस में पूर्णतया परिपूरक हैं। धर्मान्धों के तथा धर्म में जुनूनी मतान्धता के वह पक्के शत्रु हैं। सबसे महत्व की बात यह है कि काकासाहेब की गहन कलात्मक संवेदनशीलता उनके प्रत्येक विचार, शब्द तथा कार्य में झलकती है। इस सम्बन्ध में वह रवीन्द्रनाथ टैगोर के बहुत निकट हैं दूसरी ओर यह जीवन की सादगी तथा अहिंसा में निष्ठा और सर्वोदय के आदर्श से ओतप्रोत होने के नाते गांधीजी के बहुत निकट हैं। हमारे समय में गांधीजी द्वारा प्रेरित क्रांति ने शायद ही कोई ऐसा दूसरा नेता उभारा हो, जो अपने में गांधीजी और रवीन्द्रनाथ टैगोर की विरासतों को ओतप्रोत कर सका हो ।
इस समय काकासाहेब ६५ वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, भगवान से मेरी यह प्रार्थना है कि वह अपनी शताब्दी पूरी करें - सशक्त शरीर और सतर्क मन के साथ और सतत साधनारत जीवन के साथ। O
३२ / समन्वय के साधक