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________________ रामेश्वरजी भी काकासाहेब के पास विद्यापीठ में पढ़े थे। इस तरह सभी बच्चों पर काकासाहेब का बड़ा गहरा प्रेम रहा । काकासाहेब, किशोरलालभाई, नरहरिभाई, महादेवभाई, मगनलालभाई — इन सबके साथ जमनालालजी का सगे भाइयों से अधिक स्नेह जम गया था। इन सभी में अनोखी विशेषताएं थीं और इन सबकी बापूजी के प्रति अनन्य भक्ति थी । स्वामी आनन्द भी इन्हीं के साथी थे और केदारनाथजी महाराज का जीवन भी बड़ा तपोमय रहा । वर्धा के तपोधन जाजूजी भी इन्हीं के सहयोगी और बड़े संयमी सत्पुरुष थे । इन सभी का आपस में गहरा प्रेमभाव था । इसलिए मुझे भी ये सब अपने परिवार के समान ही लगते रहे । इन सबकी खूबियां काकासाहेब जानते हैं और सबकी स्मृतियां उनके हृदय में भरी हैं। काकासाहेब जहां बैठते हैं, वहीं ज्ञान - गंगा बहने लगती है । गोते मारते रहो । कासाहेब शतायु हों और उनके पास अनमोल अनुभवों का जो खजाना है, वह जिनसे जितना जा सके, लूटते रहो । O लूटा भारत के सांस्कृतिक राजदूत बनारसीदास चतुर्वेदी 00 पूज्य काकासाहेब के प्रथम दर्शन मुझे सन् १९२१ में साबरमती आश्रम में हुए, जबकि मैं प्रवासी भारतीयों का कार्य करने के लिए बापू के आदेशानुसार शान्तिनिकेतन से वहां पहुंचा। एक बात में काकासाहेब और मेरा साम्य है । वे भी शान्तिनिकेतन के रास्ते से ही बापू के पास पहुंचे थे। साबरमती के छात्रावास में काकासाहेब का कमरा दूसरे तल्ले पर मेरे कार्यालय के ठीक ऊपर था। चूंकि काकासाहेब बड़े स्वाध्यायशील थे, और निरन्तर व्यस्त रहते थे, इसलिए उनसे अधिक बातचीत करने के मौके नहीं मिले। उन दिनों आश्रम में कितने ही प्रतिष्ठित व्यक्ति रहते थे, जैसे मगनलाल गांधी, छगनलाल जोशी, मशरूवाला, पं० तोताराम तथा हरिभाऊजी । बापू और काका का कमरा सड़क के दूसरी ओर था । साहेब को बहुत निकट से देखने के अवसर तो मुझे नहीं मिले, पर उनकी अनेक रचनाओं को मैं तब भी पढ़ा करता था। उनकी 'सप्त सरिता' नामक पुस्तक मुझे तब भी प्रिय थी। बापू के जो संस्मरण आगे चलकर छपे, वे भी बड़े महत्त्वपूर्ण हैं । काकासाहेब का अधिकार समान रूप से इन चारों भाषाओं पर हैमराठी, गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी । इनके सिवा संस्कृत के तो वे महान पंडित हैं। गुजराती में काकासाहेब की शैली काफी प्रसिद्ध हो चुकी है। एक बार अवागढ़ के राजासाहब को महात्माजी से मिलाने के लिए ले गया । राजासाहब ने बातचीत के दौरान कहा, "मैं अवागढ़ में संस्कृत के अध्ययन का केन्द्र कायम करना चाहता हूं।" उसी समय बापूजी ने मुझसे कहा, "आप राजासाहब को काकासाहेब से मिला दें । वे संस्कृत के विषय में अधिकारपूर्वक सलाह दे सकते हैं।" 1 व्यक्तित्व : संस्मरण / २७
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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