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होते-होते पौने सात बज गये । काकासाहेब ने १५ मिनट के बाद बीच में उसी जगह भाषण बंद करके भोजन कर लिया और बाद में भाषण चालू रखा । काकासाहेब के व्यक्तित्व का उनकी व्रत-निष्ठा भी एक पहलू रही है ।
साहेब के साथ मुझे सिंध, आसाम, दक्षिण भारत और देश के अन्य कई प्रांतों में हिन्दी-प्रचार के सिलसिले में घूमने का सुयोग मिला। काकासाहेब एक जीते-जागते नित्य प्रगतिशील विश्वकोश ही रहे हैं । ऐसा जीता-जागता संदर्भ-ग्रंथ बहुत दुर्लभ है । भाषा- कोविद तो हैं ही। जन्म से महाराष्ट्रीय होते हुए भी गुजराती के चोटी के साहित्यिकों में और मनीषियों में उनकी गणना होती है । रसिकता उनकी अदम्य है । शब्द - विन्यास भी विलक्षण है । 'नगरपालिका' शब्द के जनक काकासाहेब ही हैं। नदियों को उन्होंने 'लोकमाता' की संज्ञा दी। वे अद्वितीय प्रवासी हैं। संस्कृति के परिव्राजक हैं। उनका सबसे प्यारा शब्द 'समन्वय' है । वही उनकी tar-दृष्टि का बोधक है। सांस्कृतिक समन्वय, धार्मिक समन्वय और राष्ट्रीय समन्वय के वे उद्गाता रहे हैं। मुझे उनके साथ निकट परिचय का सुयोग मिला है। इस रत्नाकर में से अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ रत्न मैंने यहां प्रस्तुत किये हैं। O
उनकी बहुमुखी सेवाएं
जगजीवन राम
आचार्य काकासाहेब कालेलकर एक स्वतंत्रता सेनानी और हिन्दुस्तानी भाषा तथा संस्कृति के समर्थक रहे हैं । वे एक समाज सेवी के अतिरिक्त राष्ट्र-सेवी और साहित्य सेवी भी हैं। इनकी राष्ट्रीय भावना और साहित्यिक प्रतिभा सर्वमान्य है ।
शुभकामना है कि काकासाहेब दीर्घजीवी हों और देश, राष्ट्र, समाज और साहित्य की सेवा में लगे रहें। O
ज्ञान के भण्डार
जानकी देवी बजाज
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आ. श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर
श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र कोवा ( गाधीनगर) पि ३८२००९
बापूजी के साबरमती आश्रम में काकासाहेब, उनकी धर्मपत्नी काकी और उनके दो बेटे सतीश और बाल 'चाली' में रहते थे। वहीं पं० मोरेश्वरजी खरे, उनका परिवार, किशोरलालभाई और गोमतीबहन, नरहरिभाई और मणीबहन पारिख सपरिवार, लक्ष्मीदासभाई आसर और बेलाबहन का परिवार – ये सब रहते थे। उस समय हम लोग भी सपरिवार लाल बंगले के पीछे सात कोठरियों के पास 'जमनाकुटीर' में
व्यक्तित्व : संस्मरण / २५