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________________ मानसिक शक्ति वेदान्त और भारतमाता दोनों के ओर की निष्ठा से प्रेरित होनी चाहिए।... पूजा में घंटध्वनि का असर तुम्हारे मानस पटल पर अधिक होता है, यह पढ़कर मुझे बहुत आनंद आया ऐसी छोटी वस्तु में भी हममें कितना साम्य ! रूप-दर्शन से ध्वनि का माहात्म्य आत्मा की दृष्टि से अधिक है। आज बहुत लिखवाया। अगर अहमदाबाद आ सकेंगे तो जरूर मिलेंगे, लेकिन संभव है वहां पर्याप्त समय न मिले, कई लोगों से मिलने का हो। तुम्हें दिल्ली आने का समय निकाल लेना चाहिए । लेकिन हमें जल्दी नहीं । कालेहि अयम् निरवधिर् विपुलात्व पृथिवी । स्नेहाधीन काका के सप्रेम शुभाशिष पूणे १४-१-३७ अनसूया बजाज को ' चि० सौ० अनु. ता० ३ और ५ के दोनों पत्र तुम्हारे मिले। कितने मधुर लिखे हैं । मोटर के प्रवास का तुम्हारा वर्णन इतना जीवन्त है कि मानो मैं तुम्हारे साथ ही प्रवास कर रहा हूं और गरम रेत में मेरे पांव के बिस्कुट बन रहे हों, ऐसा मुझे लगा । रात के तारों के साथ अच्छी दोस्ती कर ले ये तारिकाएं सनातन भक्तियां हैं। उनका रास अखण्ड चलता है। राजपूताने में तारों की शोभा विशेष रहती होगी। ध्रुव, ध्रुवमत्स्य, शर्मिष्ठा, देवयानी, हंस, अभिजित वगैरा नक्षत्र देखने लायक हैं, किन्तु पत्र में कैसे दिखाये जायें ? श्याम वगैरा पुस्तकें जरूर मैं तुमसे सुनूंगा, लेकिन मेरे संस्मरण तो तुमको ही लिखने पड़ेंगे। मैं सुनाता जाऊंगा और दूसरे दिन तुम उनको लिख कर ले आना । कबूल ? तुमको समय दिया तो तुम उत्तम तरह से तैयार होगी, लेकिन मेरा ही कार्यक्रम अव्यवस्थित चलता है। इसलिए नियमित समय देकर सिखाना नहीं हो सकता। दिन भर के कार्यक्रम में से ही बहुत कुछ सीखने का होता है । देख, सुनकर, और करके अधिक सीख सकते हैं। पर इसके लिए निश्चित समय नहीं हो सकता । खैर, इन बातों का कभी अन्त नहीं आयेगा । छुटपन में मैंने देखा था एक घुड़सवार जीन पर से सरककर घोड़े के पेट के नीचे लटक रहा था; घोड़े की लातें सवार को लग रही थीं। आखिर घोड़ा हमारे घर के बिलकुल सामने ऐसा उछला कि सवार का लटकता सिर एक पत्थर पर एक नारियल के समान पटका और 'अय्वयो' कर उसने प्राण त्यागे तुम्हारे पत्र में ऊंट के बारे में पढ़कर मुझे चालीस- पैंतालिस साल पहले की यह घटना याद आयी । पहले याद आयी होती तो उसे 'स्मरण-यात्रा' में लिख देता । मैं आज बम्बई जाता हूं। ता० १५ को ता० १६ को, वर्धा अथवा नागपुर। १८-११-२० मुजफ्फरपुर । २१-२२-२३ को देवघर, वैद्यनाथ धाम, सन्थाल लोगों का प्रदेश देखना है । २५ ता० तक वापस वर्धा । १. राधाकृष्ण बजाज की पत्नी अनसूया । पत्रावली / ३०१
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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