SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लड़ाइयां और विनाश ही उत्पन्न होंगे। पत्नी की तंदुरुस्ती ठीक न हो अथवा गर्भाशय में कोई विकृति हो और फलतः बच्चे को जन्म देना खतरनाक हो जाये अथवा बच्चे जन्म लेकर थोड़े ही दिनों में मर जाते हों और ऐसी हालत में भी पतिपत्नी दोनों संयम रखने में असमर्थ ही हों, तो उस हालत में निरोध के साधन भले काम में लें। इसे मैं क्षम्य मानूंगा, किन्तु खर्चीला जीवन-स्तर निभा नहीं सकते, इसलिए साधन काम में लेना, यह नामर्दायी है। बच्चे भी मेहनत-मजदूरी करके अपना भाग्योदय ढूंढ़ लें, यही योग्य है। ऐसी स्थिति से लोग इतने डरते क्यों है ? आदर्श समाज में कोई मनुष्य जन्म से श्रीमंत रह ही नहीं सके, ऐसा होगा। जेल जाने के बाद वहां सब जैसे एक-से होते हैं, वैसे यदि समाज में सबका प्रारंभ एक-सा कर सकते तो प्रत्येक को अपने ही बल से आगे आने की सधाई मिलती। काका के सप्रेम सुभाशिष यशोधरा को ४०/ए, बी.जी. खेर मार्ग बम्बई-४००००६ ६-२-७५ चिरंजीव प्यारी यशोधरा, तम्हारा दिनांक ३-२ का छ: आठ पन्ने का पत्र मिला। पढ़कर बहत आनन्द मिला। जब समय मिले तब ही प्रफुल्ल मन और मुक्त कलम से लिखना। (इतना लिखवाकर मैं नहाने गया इतने में चि०सरोज ने तुम्हें पत्र लिखा जो इसके साथ है। उस पत्र को मेरा पत्न ही समझना।) अब तुम्हारी शिव-भक्ति के बारे में हम दोनों 'वेदान्ती ऐकेश्वरी' हैं। आज का हिन्दू धर्म वैसा ही है। विशेष तो हमारी शिवभक्ति । उसमें हम एक-हृदय हैं । हमारा खानदान ही शिवभक्त । हमारे पिताजी घर के अन्दर के देवमंदिर में हमेशा शिव-पूजा करते । उस छोटे-से मंदिर में अनेक छोटी मूर्तियां । मुझे यज्ञोपवीत मिला, उसके पूर्व से ही मैं मूर्तियों को स्नान करवाने में पिताश्री की मदद करता था। गोवा में हमारे कुलदेवता का मंदिर मंगेशी। वह भी शिव मंदिर। वहां मैंने छुटपन में महीना दो महीना पूजा की है 'सोलह सोमवार' किये हैं। अब शिवलिंग की उसासना के बारे में मैंने भी 'सौराष्ट्र सोमनाथम्' आदि श्लोक कंठस्थ किये थे । अनेक स्थान की यात्रा की। लेकिन हर जगह पुजारियों की अत्यंत हीन मनोवृत्ति देखकर और पूजा के प्रकार देखकर निश्चय किया कि बारह ज्योतिलिंग के दर्शन को जाना ही नहीं। उन स्थानों पर शिवजी नहीं, लेकिन पुजारी ही हैं । मैं जाति से ब्राह्मण होकर और अपने धार्मिक इतिहास को पढ़ा है इसी कारण, ब्राह्मणों के पापों को सह नहीं सकता। स्वामी विवेकानन्द जन्म से क्षत्रिय, वे ब्राह्मणों के दोष भले ही निभा लें। ब्राह्मणों को अपने पुरखों के दोषों को मिटाने के लिए प्रायश्चित्त करके धर्म में परिवर्तन लाना ही चाहिए। १. अहमदाबाद में हिन्दी की शिक्षिका; हिमालय की पुजारिन । पत्रावली | २६६
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy