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________________ और गलती करो) की नीति-सी मालूम होती है, और सांस्कृतिक नीति ने अभी कोई रूप ही पकड़ा नहीं है । मध्यकाल से कूदकर भविष्यकाल में दौड़ना आसान नहीं है । नेपाल के महाराजा जागरूक हैं, चतुर हैं। उनसे औपचारिक ढंग से मिलना कुछ काम का नहीं था। नेपाल के सांस्कृतिक नेताओं से मिलने की खूब इच्छा थी । शायद किसी समय फिर से नेपाल जाना इष्ट होगा । मैं यहां 'हिन्दुस्तानी प्रचार सभा' के उद्देश्य को व्यापक बनाकर सर्व-धर्म समन्वय की ओर ले जा रहा हूं। केवल दो लिपि की बात और मिश्र भाषाशैली की बात 'डेड इशू (निष्प्राण बिन्दु) जैसा लगता है। सर्व धर्म समन्वय की भूमिका पर हम 'हिन्दुस्तानी'- - मानस सजीवन कर सकते हैं। मेरा विचार है कि भारत सरकार की अनुमति लेकर 'गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा' का नाम और स्वरूप भी हम व्यापक बना दें। ट्रस्टियों में राजकुमारी अमृत कौर के स्थान पर किसी को लेना है। राजकुमारीजी को ईसाई और स्त्री समाज की प्रतिनिधि हम मान सकते थे। उनकी जगह बीबी अमतुस्सलाम बहन को लेने का सोच रहा हूं । समन्वय का काम वह असाधारण निष्ठा से कर रही हैं। राजपुरा के अलावा, इनका नेफा का और कश्मीर का काम अच्छी तरह से बढ़ा है। यहां 'भारत सेवक समाज' के चन्द लोगों के सहयोग से सर्व-धर्म-समभाव और समन्वय का काम शुरू करना चाहता हूं-शुरू किया ही है। उसका एक परिपत्र आज की डाक से आपके नाम भेज रहा हूं। यह कच्चा प्रारूप है। स्नेहियों की राय मिलने पर इसी को सुधार बढ़ाकर अन्तिम रूप दिया जायेगा । w 'मंगल प्रभात' की ओर देखने का आपको समय ही नहीं मिलता होगा। भारत की ओर से नेपाल में जो काम हो रहा है, सचमुच महान कार्य है। अभी तो बीज बोया जा रहा है । उगेगा, तब उसकी महानता दुनिया देख सकेगी आपकी सात्विकता बड़ी ही मददगार होगी। 1 बबल मेहता को काका के सप्रेम वन्देमातरम् १. गुजरात के अनन्य सेवक तथा उस प्रान्त की रचनात्मक संस्थाओं के परामर्शदाता । ' २८४ / समन्वय के साधक गुजरात विद्यापीठ अमदाबाद आषाढ सुद ४. बुध प्रिय भाई बबल मेहता, मेरे पास अभी तक मुझे प्रथम तो आपकी क्षमा मांगनी चाहिए। आपका ता० १६ का पत्र अनुत्तरित पड़ा है। वह पत्र आया तब उसका महत्व देखकर पहले के आपके पत्रों की बारीकियां फिर से पढ़ने के बाद आपको विस्तृत उत्तर देने का सोचा था । गफलत से वह पत्र बाजू पर रह गया, आज फिर से हाथ में आया है।
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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