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अभी भी आप से विनती करता हूं कि हमारी दया से नहीं-वह तो आप जानते ही नहींकिंतु सत्य को संभालने के लिए उपवास छोड़ दीजिए।...सत्य के नाम से कहता हूं कि आपके उपवास में अन्याय है, यह देखकर भूल से या गलतफहमी से लिये हुए उपवास छोड़ने का भी एक उदाहरण आप पेश कीजिये।
स्वास्थ्य सुधारने के लिए मैं यहां आया हूं, इसलिए जल्दी में कुछ नहीं करना चाहता। किन्तु यदि आप उपवास नहीं छोड़ेंगे तो यहां से छूटने के बाद मुझे भारी प्रायश्चित करना पड़ेगा; नहीं तो मुझे आंतरिक समाधान कैसे मिलेगा?...
उपवास छोड़ने का तार मुझे तुरंत भेजेंगे, ऐसी उम्मीद है।...
आप मुझे प्रफुल्लित रहना कहते हैं। आपके दिल्ली के २१ दिन के उपवास के दरम्यान मैं प्रफुल्लित था; किन्तु आज मैं प्रफुल्ल कैसे रह सकता हूं।...
दीन सेवक काका के सादर प्रणाम
(२)
पार्वतीपुर स्टेशन पर मध्यरात के पश्चात्,
१५-८-४७
का आरंभ परम पूज्य बापूजी,
परमात्मा की कृपा से और आपके पुण्यप्रताप से आज का स्वातंत्र्य का दिन देखने का भाग्य मिला है । यूं तो १८६७ से ही हम बच्चे हिन्दुस्तान को स्वतंत्र करने की बातें करते थे, किन्तु स्वातंत्र्य की प्रतिज्ञा
ली थी सन १९०६ में । तबसे जीवन ने अनेक करवट बदलीं; लेकिन यह एक संकल्प अविचल रहा। और वही संकल्प मुझे हिमालय में से वापस सेवा-क्षेत्र में ला सका। १९०६ से आपका नाम सुनता आया और आपके बारे में लेख भी लिखे। किन्तु आपके दर्शन तो शान्तिनिकेतन में १९१५ में ही हुए। देश की स्वतंत्रता और आध्यात्मिक मोक्ष ये दो अलग-अलग आदर्श नहीं हैं, इसका स्पष्ट साक्षात्कार आपने कराया। इसीलिए अपनी अत्यंत तुच्छ सेवा मैंने आपके चरणों में अपित कर दी। तबसे आजादी क्या है, इसका ख्याल स्पष्ट होता चला। अब जब सारे देश के साथ हादिक उमंग-उल्लास से स्वातंत्र्य-प्राप्ति का दिन मना रहा हूं, तब मेरा अंतर कहता है कि सच्ची आजादी अभी बहुत दूर है। पूरा विश्वास है कि वह सच्ची आजादी भविष्य में नजदीक आयेगी ही, किन्तु पूर्णरूप से तो हाथ आयी है, ऐसा तो कह ही नहीं सकते।
मध्य रात्रि को मैं जागता ही था। बारह बजे सब-के-सब ऐन्जिनों ने स्वातंत्र्य फूंकना शुरू कर दिया। चि० सरोज, अमृतलाल और मैं-हम तीनों ने साथ बैठकर प्रार्थना की। ईशोपनिषद् पूरा गाया।
और अमृतलाल ने 'आज मिल सब गीत गाओ, वाला भजन गाया। हम तीनों गले मिले। तीनों के हृदय में उस क्षण आप.थे ही।
उसके बाद तुरंत आपको यह पत्र लिख रहा हूं ! मुझे आप से इतना कहना है कि आज से मैं जो
२८२ / समन्वय के साधक