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सत्याग्रह के सिद्धांतों को आत्मसात करनेवाले मो० क० गांधी 00 काका का अनुभव जैसा मुझे इस बार जेल में हुआ, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। काका में 'महाराष्ट्रीयता' रही ही नहीं है । काका की अपार मृदुता मैं जेल के बाहर शायद कभी देख नहीं पाता । काकासाहेब कभी ऐसे हो सकते हैं, ऐसी कल्पना आप कर सकेंगे? मैंने उन्हें जार-जार आंसू बहाते देखा है। काका मुझे कई बार कहते, "मुझमें अनेक दोष हैं। जैसे-जैसे आपके ध्यान में आवें, आप कृपया निर्दय होकर मुझे कहते जायं, सुधारते जायं।" मैंने कहा, "यह जो विश्वास आप मुझ पर रखते हैं, उसका मैं पूरा उपयोग करूंगा।" और उसके अनुसार कभी मेरी कड़ी टीका हो जाय, तब अपनी भूल कबूल करके काका रोते भी थे। सत्याग्रह के सिद्धान्तों को तो काका ने पूरा आत्मसात किया है...
काका के बारे में डॉइल के मन में पक्षपात हो, इसमें आश्चर्य नहीं है । डॉइल ने तो काका को मुसलमानों के पक्ष में सत्याग्रह करते देखा है। सत्याग्रह की मीमांसा डॉइल ने काका के पास से सुनी होगी, अनेक चर्चाएं भी की होंगी, फिर तो डॉइल जैसा आदमी उनके गुणों से और उनकी शक्ति से आकर्षित हो, उसमें आश्चर्य किस बात का है ?
मैंने अपने 'आकाशदर्शन' लेख में काका के सहवास को 'सत्संग' कहा है और उस 'सत्संग' को मैं बहुत दफा हृदय से चाहता था।
१. इंस्पेक्टर जनरल ऑफ प्रिजन्स
हमारा दीर्घकालीन सान्निध्य जे० बी० कृपालानी 00 काकासाहेब से मैं सर्वप्रथम १९०७ में मिला, जब हम दोनों फर्गुसन कालेज में बी० ए० के आखिरी साल में पढ़ रहे थे। मेरी राजनैतिक प्रवृत्ति के कारण मुझे कराची और विलसन कालेजों में प्रवेश नहीं दिया गया। उन दिनों बृहत्तर बम्बई प्रान्त के कालेजों के, पूना के फर्गुसन कालेज को छोड़कर, प्रधानाचार्य अंग्रेज थे। वहां भी मेरा प्रवेश आंशिक ही था।
वहां के महाराष्ट्रीय विद्यार्थियों के साथ मैंने मित्रता की। उन दिनों फर्गुसन कालेज के विद्यार्थी
व्यक्तित्व : संस्मरण | २१