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________________ कि किसी समय आपके प्रति मेरे मन में घोर शंकाएं रह चुकी हैं। एक दिन ऐसी ही कुछ बातें हो रही थीं। बातचीत के सिलसिले में बिलकुल स्वाभाविकतयाश्री एंड यूज ने कहा, "मुझे हिन्दुस्तान का नेता या गुरु नहीं बनना है । मैं अंग्रेज हूं, नम्र सेवक बनकर ही मैं हिन्दुस्तान की सच्ची सेवा कर सकता हूं। मैं ऐसे अंग्रेजों को जानता हूं जो हिन्दुस्तान में आकर गुरु, नेता या मालिक बनकर हिन्दुस्तान के लोगों को उपदेश देने लगते हैं। मुझे वैसा काम नहीं करना है हिन्दुस्तान के लोगों का उद्धार हिन्दुस्तान के लोगों द्वारा ही होगा। उद्धार के रास्ते वे ही ढूंढेंगे और तय करेंगे। हिन्दुस्तान के लोगों की जो कुछ सेवा मुझसे बन सके, वह करना मेरा काम है। वह सेवा भी हिन्दुस्तान के लोग जिस तरह मुझसे लेंगे। उसी तरह मुझे करना है।" इतनी बातें सुनने के बाद मेरा दिल साफ हो गया और मैं भी एंड यूज को दुनिया के श्रेष्ठ पुरुषों में गिनने लगा। जैसे-जैसे उनकी मानवता से मेरा परिचय बढ़ता गया, वैसे-वैसे उनके प्रति मेरा आदर भी बढ़ता गया। आज दर्द इसी बात का है कि उनकी तरफ से सब तरह का प्रोत्साहन होते हुए भी मैंने उनके सत्संग का लाभ अधिक क्यों नहीं उठाया? कभी-कभी उनसे मिलता था और अनेक विषयों पर हमारी चर्चाएं होती थीं; लेकिन मुझे उनके समय का हमेशा ख्याल रहता था और मेरा काम भी मुझे ज्यादा बैठने नहीं देता था। आज जब उनका सत्संग अलभ्य हो गया है, उनकी दी हुई एक किताब-'दी क्रीड ऑफ क्राईस्ट'-पढ़ रहा हूं और इस तरह उस महान आत्मा का सत्संग प्राप्त कर रहा हूं। श्री एंड यूज के बारे में लिखने लायक बहुत कुछ है । यहां तो उनसे केवल प्रथम परिचय का संस्मरण ही शब्दबद्ध करना था। मई १९४० १. स्वराज्य संस्कृति के संतरी' से सरहद केगांधी खान अब्दुल गफार खान मैंने अपनी जिंदगी में जो नेक, पवित्र और सीधे संत-सत्पुरुष देखे उनमें खान अब्दुल गफार खान का स्थान है और काफी ऊंचा है। उनका ऊंचा भव्य शरीर और उनकी प्रेमपूर्ण मीठी जबान दोनों का असर दिल पर तुरंत होता ही है। किंतु मैं उन्हें तब पहचान सका, जब वे बिना किसी का ध्यान खींचे, एक बाजू पर चुपचाप भगवान् का ध्यान करने बैठे थे। ध्यान में बैठने का रिवाज दुनिया में कोई नया या अजीब नहीं है । लेकिन दिखावे के लिए ध्यान में बैठनेवाले अलग होते हैं, और हृदय की आंतरिक प्रेरणा से ध्यान में मगन होनेवाले और अपने को भूल जानेवाले अलग होते हैं। खान अब्दुल गफार खान जिन्हें लोग प्रेम से बादशाह खान कहते हैं सच्चे ईश्वरभक्त हैं। सबके प्रति उनके मन में प्रेम ही रहता है। लेकिन असत्य, दम्भ और दिखावा वे बिलकुल सहन नहीं कर सकते। सचमुच वे खुदाई खिदमतगार ही हैं। विचार : चुनी हुई रचनाएं | २७१
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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