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लेकिन अब हम देख सकते हैं कि दूध में जो-जो जीवन-तत्व हैं, वे सब घी में, खोवे में और पनीर में नहीं आ सकते। छोटी-छोटी और असंख्य सूक्ष्म चीजें जो जीवन के लिए अत्यावश्यक हैं, घी आदि सार-पदार्थों में गायब होती हैं। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक जीवन-पोषण का जो काम दूध करता है, वह घी, पनीर अथवा खोवा नहीं कर सकता। इनमें भी थी तो केवल चरबीमात्र है। इससे तो खोवा और 'चीज' अच्छा। लेकिन दूध तो दूध ही है। दूध को हम जीवन सर्वस्व कह सकते हैं ।
फूलों की भी यही बात है । फूलों के बगीचे में बैठना, घूमना, फूलों का दर्शन करना, उनसे वार्तालाप करना, उनकी बातें सुनना इसमें जो शारीरिक, मानसिक, कलात्मक, भावनात्मक और आध्यात्मिक लाभ है, वह इल का फायदा कान में रखने से और गुलाब जल कपड़े पर छिड़कने से प्राप्त नहीं होता। फूलों के बगीचे में बैठकर फूलों के साथ जीवन-विनिमय करना आध्यात्मिक साधन बन सकता है जीवन-साधना का वह एक प्रकार ही है । गुलाब जल और इत्र-व्यवहार करना या तो विलासिता का ढंग है अथवा शारीरिक, मौखिक दुर्गन्ध को ढक देने का एक उपाय है। घर के आस-पास अथवा शहर के और गांव के कोने-कोने में जो दुर्गन्ध इकट्ठा होती है, उसे दूर करने की अपेक्षा उसे ढक देने के लिए, छिपाने के लिए, सुगन्धित द्रव्यों का उपयोग करना जीवन के साथ ठगी चलाना है ।
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जो हो, सार के नाम से जो चीज हम इकट्ठा करते हैं, वह अत्यंत महत्त्व की होते हुए भी उसमें जीवन के कई सूक्ष्म और अत्यन्त महत्व के तत्व नष्ट हो जाते हैं। आज के आहारशास्त्री कहते ही हैं कि गन्ने के रस में जितने पोषकतत्व और प्राणतत्व होते हैं, उनमें से बहुत कुछ चीनी में नहीं आते। चीनी पौष्टिक पदार्थ है सही, शुद्ध भी है, स्वच्छ है, दीर्घकाल तक टिक सकती है । थोड़े में बहुत-सा आहार - मूल्य समाया जा सकता है। लेकिन जो जीवन-तत्व गन्ने के रस में हैं, उसका प्रधान अंश चीनी में नहीं आ सकता ।
अब ऐसे भी प्रयास होने लगे हैं कि दूध में से मक्खन और घी निकालकर बाकी के दूध को बेचना । पहले उसे कहते थे 'स्किम्ड मिल्क'। आजकल उसे कहते हैं 'टोण्ड मिल्क'। ऐसा दूध सस्ते में मिलता है। जिन बीमारों को दूध नहीं मिलता, वहां ऐसे 'टोण्ड मिल्क' की छाछ भी मिले तो उनका स्वास्थ्य सुधर सकता है । कसरत मेहनत न करनेवाले बिठाऊं लोग भी खाकर भले ही मानें कि हमें दूध का सार मिल गया। अच्छेअच्छे तत्व 'टोण्ड मिल्क' की छाछ में ही पाये जाते हैं । और गरीब लोगों के पास प्राणतत्व चूसने की हाजमा शक्ति होने से वे निःसत्व दूध की छाछ से भी काफी प्राणतत्व पा जाते हैं ।
केवल उपमा के लिए दूध और फूल की उपयोगिता का विस्तार यहां तक किया; क्योंकि हमें एक महान जीवनोपयोगी बात समझानी है ।
सब कोई जानते हैं कि मनुष्य जीवन में शरीर की अपेक्षा प्राण का महत्व अधिक है । प्राण से भी बढ़कर है मन अथवा वित्त इस मन और चित्त का सार है बुद्धि और परमात्मा तो बुद्धि से भी परे है। गीता ने एक श्लोक में यही कहा है कि शरीर में इन्द्रियों की प्रधानता है । उनसे बढ़कर है मन । उनसे दूर है बुद्धि और उसके भी परे है आत्मा ।
'इन्द्रियाणि पराणि आहुः । इन्द्रियेभ्यः परम् मनः । मनसस्तु परा बुद्धिः यो बुद्धेः परतः तु सः ।। "
इसलिए तो आत्मा को 'अन्तरात्मा' कहते है और उसकी उपासना बताई गई है।
लेकिन जीवन का उत्तम रस भले ही आत्मा में हो, हमारे हृदय में भले ही परमात्मा, पर ब्रह्म का निवास हो; उनके बिना हमारा जीना अशक्य, निःसत्व असम्भव ही क्यों न हो, केवल आत्मा, परमात्मा जीवन सर्वस्व नहीं है। जीवन का सार आत्मा में आ जाता है। इसलिए आत्मा को खोकर जीना 'महत् हानि'
२३० | समन्वय के साधक