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देने की ही अधिक जल्दी होती होगी। सांप जिस प्रकार अपनी केंचुली उतारकर फिर से जवान बनता है, उसी प्रकार पुराने पत्ते त्यागकर पेड़ भी वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए फिर से जवान बनने की तैयारी करता होगा, इसलिए यह कहने का दिल नहीं होता कि ये पत्ते टूटते हैं या गिरते हैं। ये पत्ते तो छूट जाते हैं। हाथ में पकड़ रखा हुआ कोई पक्षी जैसे मुट्ठी कुछ ढीली होते ही चकमा देकर उड़ जाता है उसी प्रकार ये पत्ते तेजी से छूट जाते हैं।
गर्मी के ताप से झुलसकर खाकी रंग के बने हुए पत्ते देखकर मेरे मन में प्रसन्न हास्य की कल्पना नहीं आ सकती। लेकिन इन पत्तों का रंग तो कसदार जुवार की कड़वी का-सा सुनहरा होता है। धूप से उनका आकार टेढ़ा-मेढ़ा होता है सही, लेकिन उसे उपमा ही देनी हो तो सेके हुए पापड़ की देनी चाहिए। यह पत्ते गमगीन या मुरझाये हुए बिलकुल नहीं मालूम होते । इसलिए उनकी सर-सर ध्वनि को मुक्त हास्य कहने का मन होता है।
पेड़ पर के पत्तों को क्या लगता होगा, यह सोच रहा था कि 'बॉबी' नाम के एक अंग्रेजी मृग-चरित्र का एक छोटा-सा पर्ण-युगल-संवाद पढ़ने में आया। मरणोत्तर जीवन कैसा होना चाहिए, इसकी कल्पना करने के लिए दो ऋषि आपस में चर्चा करते हों, ऐसा ही संवाद है। लेकिन बुढ़ापे के आसार देखकर पैदा हुई अस्वस्थता छिपाने के लिए 'मैं कुछ उतना विशेष बूढ़ा तो नहीं हुआ है।' कहकर अपने मन को ढाढ़स बंधाने वाला और 'ना जी, आपको बूढ़ा कौन कहेगा? आप तो अच्छे मोटे-ताजे हैं और यह जो सफेद नुक्ते सिर पर कहीं-कहीं नजर आते हैं उससे आपका सौन्दर्य और ही खिल उठता है।' कहकर एक-दूसरे को दिलासा देनेवाला मगरीबी लोगों के स्वभाव की कुछ छटा भी इस संवाद में उतरी हुई है। यह संवाद बहुत मजे का है। लेकिन उसे पढ़कर भी इस नाम के पत्तों के सुन्दर खेल से निर्माण हुई प्रसन्नता किसी भी तरह कम न हुई । झड़ने वाले हरे पत्तों के पीछे उसी क्षण फूट निकलनेवाली कुंपलों के अंकुर मुझे अपने मनश्चक्षु के सामने दिखाई देने लगे हैं। ये पत्ते बुढ़ापे के प्रतिनिधि नहीं, किन्तु नवयौवन के अग्रदूत मालूम होते हैं। उनके चेहरे पर किसी प्रकार का विषाद दिखाई नहीं देता। तो फिर देखनेवाले मातमी चेहरा बनाकर इन वेदान्ती पत्तों का अपमान किसलिए करें ?
आज तक सूखे हुए पीले पत्ते ही गिरते थे। लेकिन दो दिन से बारिश की दो-चार बंदे गिरनी शुरू हो गई हैं। परसों तड़के एक अच्छी बौछार आई और उसके कारण कई एक बिलकुल हरे पत्ते भी हिम्मत हारकार नीचे आये। तिसपर बीच में हवा के जोरदार झोंकों के कारण 'गिरें या न गिरें' का निर्णय न कर सकने वाले पत्तों की ओर से पवन ने अगना कास्टिंग वोट (निर्णायक मता) दिया और वे भी सब नीचे गिर गए।
इस प्रकार असमय हुआ, उनका यह अधःपात देखकर तो मुझे दुःख होना चाहिए था, मगर वैसा भी नहीं हआ। मेरे मन में हमेशा एक प्रकार की उतावली रहती है। कोई मेहमान आनेवाले हों तो जल्दी क्यों नहीं आते, ऐसी अधीरता का मैं अनुभव करता हूं। मासिकों के अंकों का भी वैसा ही होता है। हमेशा यह लगा हुआ करता है कि अपने निश्चित दिन के पहले वे आयें तो कैसा? यह हुई एक बाजू । दूसरी तरफ से मन में यह भी हुआ करता है कि "जानेवाले मेहमान तो हैं ही, तो फिर बहुत दिन तक जाने की बातें छेड़कर बेचैन क्यों कर देते हैं ? आखिर जाने ही वाले हैं तो भले जल्दी जायें !"ये पत्ते गिरनेवाले तो हैं ही, तो फिर सबके-सब एक साथ क्यों नहीं गिरते ? पर्णहीन वृक्ष की मुक्त शोभा तो देखने को मिलेगी ! जिस पेड़ पर एक भी पत्ता नहीं रहा और अंगुलियां टेढ़ी-मेढ़ी करके जो पागल के समान खड़ा है और जो आकाश के पर्दे पर सांझी या कालीन के चित्र के समान मालूम हो रहा है, उसकी शोभा कभी आपने ध्यान देकर निहारी है? पर्णहीन टहनियों की जाली सचमुच ही बहुत सुन्दर दिखाई देती है।
२२२ / समन्वय के साधक