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न्याय का आश्रय करके वसंत ऋतु के वर्णन से उन्हें अपना कार्य पूरा करना था। इसलिए ग्रीष्म से प्रारम्भ किया होगा ।
मैंने जब 'मध्याह्न का काव्य' वाला लेख लिखा और ग्रीष्म के सौंदर्य को अंजलि अर्पण की तब मेरे मन में हमारी सनातन राष्ट्रीय प्रेरणा ही काम करती थी । 'शाकुन्तल' के प्रारम्भ में ही कालिदास ने ग्रीष्मावतार का वर्णन दिया है । स्वच्छ, प्रसन्न, ठंडे जल में नहाते रहने का आनन्द होता है । सुगन्धी फूलों पर से आती बयार की महक सुख देती। दोपहर को घने वृक्ष की गहरी छाया में जरा लेटते ही तुरन्त सुखकर निद्रा आती है और सारे दिन का ताप खत्म होने पर दिवस की आखिरी घड़ियां इतनी तो रमणीय होती हैं कि एक दिन का आनन्द पूरा वसूल होने का समाधान मिलता है।
कुदरत की रचना ही ऐसी है कि धूप जितनी तेज उतनी ही भारतीय फूलों की सुगन्ध उत्कट आम्रमंजरी, रात की रानी, गुलछड़ी, चम्पक आदि सुगंधी फूलों का उन्माद धूप से ही बढ़ता है और स्वच्छ आकाश भी अनन्त तारों के द्वारा आंखें खोलकर यह सारा साध्य सौंदर्य पीने लगता है ।
मैं यहां बड़े तड़के लिख रहा हूं, इतने में चि० सरोज आकर कहती है, "आपका कालिदास कभी सुबह जल्दी उठकर प्रकृति का सौन्दर्य नहीं देखता होगा । ये पुराने विलासी कवि रात का दिन करके देरी से सोते होंगे। इसलिए उषाकाल का सात्विक और रमणीय आनन्द उन्हें देखने को नहीं मिलता होता । बात सही है कि 'दिवसाः परिणाम - रमणीयाः' होते हैं; लेकिन ग्रीष्मकाल में अगर कवि ब्रह्म मुहूर्त को उठकर आकाश के तारों का और उषाकाल के आगमन का दर्शन करते जो जरूर कहते
दिवसाः प्रारम्भ रमणीयाः ।
सच है, मैंने किसी समय ग्रीष्म के प्रारम्भ के दिन हरिद्वार में व्यतीत किये थे। हरि की पैड़ी के पास विशाल घाट पर घूमते या नदी के प्रवाह में पांव छोड़कर ध्यान करते ब्रह्म मुहूर्त के जितने क्षण मैंने वहां व्यतीत किये थे, उनका सात्विक आनन्द मैं कभी भूल नहीं सकता !
इसी तरह जब गर्मी के प्रारम्भ में ही पूना के पास सिंहगढ़ जाकर रहा था और सुबह चार बजे उठकर पूरब की ओर देखता था कि एक पहाड़ी के पीछे दूसरी पहाड़ी उसके पीछे तीसरी पहाड़ी ऐसे सात परदों के पीछे से उषारानी का आगमन हो रहा है तब उसकी धन्यता सारे दिन हृदय में भरी रहती।
प्रकृति माता ने गर्मी के दिनों में जिस तरह फूलों की और मंजरियों की सुगन्धी बढ़ाने का कार्यक्रम बनाया है, उसी तरह अमृतफल देने के लिए भी यही ऋतु पसन्द की है । भारत का राष्ट्रीयफल तो आम ही है। कच्चे छोटे-छोटे आम की चटनी बनाकर हम ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ करते हैं और पके हुए आम के स्वादिष्ट - तम इसके साथ ग्रीष्म की विदाई लेते हैं।
ऐसे रमणीय ऋतु के असर में आकर तार्किक लोग भी दलील कर सकते हैं कि 'आदी चान्ते च यद् रम्यं, मध्यभागेऽपि तत् तथा जिसका प्रारम्भ रमणीय है, और परिणाम भी रमणीय हो ही सकता है। उसका आनंद लेने की दृष्टि, वृत्ति और संवेदना शक्ति होनी चाहिए। 'मध्याह्न का काव्य' इसी वृत्ति से मैंने लिखा था और सन्तोष की बात यह है कि भिन्न-भिन्न प्रदेशों के अनेक स्नेहियों को वह पूरा-पूरा प्रत्यय दे सकी।
१. 'उड़ते फूल' से
२२० / समन्वय के साधक