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________________ वेदन गुरुवर अनुसार रे ब० म० बोरकर गुरुवर अनुसर, रे मन। गुरु में ही स्थित दत्त निरंतर ब्रह्मा हरिहर रे। जननी से भी गुरु दयालु, जनक से भी गुरु कृपालु, सुहृद से भी गुरु नेहालु, चिर सुख-सागर रे। गुरु-नयनों में सूर्य चमकते, गुरु-स्मित में चंद्र दमकते, गुरु के एक मधुर वचन से __ शतयुग विष उतरे। गुरु-कृपा से स्मृति निखरती, त्रिकालअखियां स्पष्ट निरखतीं, पिंड में ही ब्रह्मांड प्रतीति, मन में विश्व तरे। हे मन, हो नत गुरु-नाम में, अनुसर गुरु को धर्म-कर्म में, भृग भांति गुरु पादु-पद्म में, अविरत हो रत रे!0 अनु० विजयकुमार चौकसे वंदन | १५
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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