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वेदन
गुरुवर अनुसार रे
ब० म० बोरकर
गुरुवर अनुसर, रे मन। गुरु में ही स्थित दत्त निरंतर ब्रह्मा हरिहर रे।
जननी से भी गुरु दयालु, जनक से भी गुरु कृपालु, सुहृद से भी गुरु नेहालु,
चिर सुख-सागर रे। गुरु-नयनों में सूर्य चमकते, गुरु-स्मित में चंद्र दमकते, गुरु के एक मधुर वचन से
__ शतयुग विष उतरे। गुरु-कृपा से स्मृति निखरती, त्रिकालअखियां स्पष्ट निरखतीं, पिंड में ही ब्रह्मांड प्रतीति,
मन में विश्व तरे। हे मन, हो नत गुरु-नाम में, अनुसर गुरु को धर्म-कर्म में, भृग भांति गुरु पादु-पद्म में,
अविरत हो रत रे!0 अनु० विजयकुमार चौकसे
वंदन | १५