SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ FURIATM नामक एक विशाल, व्यापक, एकता साधक संगठन इस संस्था के अंतर्गत कायम किया जाये और इस कार्य को शुरू करके उसे संगठित रूप देने का सारा भार मेरे सिर पर डाल दिया है। कार्य का महत्त्व ध्यान में लेकर इसका स्वीकार करते समय न मैंने अपनी उम्र का विचार किया, न आज के जमाने की प्रतिकूल परिस्थिति का | काम किसी एक व्यक्ति का नहीं है, सबका है अथवा यों कहें इतिहास - विधाता का ही यह काम है, जो हमसे करवाता है। आज के लोग कहते हैं कि धर्म का खयाल ही क्यों करते हैं? धर्म तो कालग्रस्त पुरानी चीज हो गई है उन्नति कराने का कोई माद्दा उसमें रहा नहीं। जिन्हें अपनी संकुचितता, अपना स्वायं और अपनी सत्ता संभाल के बैठना है वैसे लोग ही मौका देखकर धर्म का नाम लेते हैं और अज्ञान जनता को बहकाकर सब तरह की बुराइयां पैदा करते हैं। ऐसे धर्म का नाम ही छोड़कर सबकी आर्थिक स्थिति सुधारने का प्रयत्न क्यों न किया जाय ? और सामाजिक न्याय को स्थापित करने के लिए हम प्रयत्नशील क्यों न बनें ? हम नहीं मानते कि हजारों वर्षों से चलते आये धर्मों में मानवता की ओर भविष्यकाल की सेवा करने का कोई उच्च उज्ज्वल तत्व रहा ही नहीं संत-महंतों ने धर्म-सुधारकों ने और महात्माओं ने धर्मों को सुधारकर आज तक उससे सेवा ली है, आगे भी हम ले सकते हैं । लेकिन अगर मान भी लिया कि धर्मों में किसी भी समाज का भला करने का माद्दा रहा ही नहीं तो भी यह बात तो रहती ही है कि धर्म का नाम लेकर उसका दुरुपयोग करके हजारों और लाखों लोगों को उत्तेजित करने की शक्ति धर्मों में है ऐसा दुरुपयोग रोकने की जिम्मेवारी तो किसी की होनी चाहिए। धर्मो की उपेक्षा हम कर सकते हैं, लेकिन इतना बस नहीं है । धर्मों के नाम से जो खराब काम दुनिया में किये जाते हैं उनको दूर करने के लिए धर्मों के अंदर रहे हुए अच्छे तत्वों का सहारा लेना जरूरी है। मान लिया कि सब धर्मों में प्रकाश और अंधेरा दोनों तत्त्व हैं, तो प्रकाश की मदद से ही हम अंधकार को और अंधकार के सहारे होनेवाले बुरे कामों को हटा सकते हैं। हमारे इस प्रयत्न में किसी एक धर्म की श्रेष्ठता लेकर काम करने का हमारा उद्देश्य नहीं है। एक धर्म बढ़े और बाकी के धर्म दब जाएं, ऐसी प्रवृत्तियां दुनिया में चलती हैं। उस ढंग की प्रवृत्तियां चाहे जितनी खूबियों से चलायी जाएं, पहचानी जाती ही हैं। हमारी प्रवृत्ति इनसे भिन्न है। लेकिन हमारा प्रयत्न यह रहेगा कि वैसे लोगों को भी हम बतायें कि दूसरे धर्मो के दोष दिखाकर उनका विरोध और निंदा करने में उनका हित नहीं है। किंतु हर एक धर्म में ईश्वर की कृपा से जो अच्छाइयां रहती हैं उनका स्वीकार किया जाय, उनका कीर्तन किया जाय और उसको लेकर लोग अपने-अपने धर्मों को समृद्ध और एकता के लिए अनुकूल बनावें। भारत का यही मिशन है। राजनैतिक स्थिति प्रतिकूल होने से यह काम रुक गया था। अब प्रजा का स्वराज्य होने से इसके लिए अनुकूल स्थिति पैदा हुई है। पश्चिम के लोगों ने और भारत के लोगों ने भी सब धर्मों के धर्मग्रन्थों का अध्ययन या तो आदर से या तटस्य बुद्धि से काफी मात्रा में किया है। उससे हमें लाभ उठाना है और समन्वय की दृष्टि से उसे आगे बढ़ाना है। हमारी मिशनरी प्रवृत्ति का यह एक प्रधान अंग होगा। इसके द्वारा हम विद्यार्थी-विद्यार्थिनियों को प्रेरित करेंगे और उनसे समन्वय का काम मिशनरी उत्साह से करनेवाले लोगों को पसंद करेंगे। हमारा सारा प्रयत्न ही समन्वय मिशन को समर्थ और समृद्ध करने का होगा । इसके अलावा भिन्नधर्मी समाज को माननेवाले समाजों में प्रवेश करके आत्मीयता से उनका परिचय पाकर सेवा की लेन-देन के द्वारा उनको समन्वय के लिए अनुकूल बनाने की कोशिश करेंगे । इसमें एक नीति विशेष आग्रह के साथ संभाली जायेगी । बढ़ते कदम : जीवन-यात्रा / २०३
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy