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________________ ३० :: अस्पृश्यता निवारण के लिए बापू का अनशन राज्यकर्त्ता और साम्राज्य - संस्थापक के लिए अंग्रेजी में एक बहुत अच्छी कहावत है, "भेद करके जीत लो।" अंग्रेज तो इस कला में अत्यन्त प्रवीण थे । वे जहां जाते वहां के लोगों की 'रहन-सहन और विचारप्रणाली को समझ लेते हैं। लोगों की कमजोरी कहां है सो पहचान लेते हैं और उसका लाभ लेकर आपस में को लड़ने को प्रोत्साहित करते हैं । भारत की हिन्दू प्रजा और मुसलमान राज्यकर्ता के बीच का झगड़ा समाजव्यापी हुआ था। दबे हुए दलित-हीन-जाति के कई हिन्दू अपनी स्थिति सुधारने के लिए मुसलमान हुए । उनकी हालत सुधरी, किन्तु पुराने झगड़े ज्यादा तीव्र हुए। इसका इलाज हिन्दू समाज के नेता ढूंढ़ते नहीं थे । मात्र धर्म-ग्रन्थों को पूछते थे । वहां तो कड़ी सजाएं ही मिलती थीं। फलस्वरूप इन दो समाजों के बीच खींचातानी चली। इस्लाम के सिद्धान्तानुसार ईश्वर की मूर्ति बनानी यह ईश्वर का अपमान, और मनुष्य के लिए महापाप, इसलिए मंदिर तोड़ने को वे पुण्य मानते हैं । ऐसी परिस्थितियों का लाभ अंग्रेजों ने उठाया । हिन्दुओं को एक तरह से उकसाते, मुसलमानों को दूसरी तरह से । और ये दो भी भड़कने को हमेशा तैयार रहते । इस परिस्थिति को समझकर कांग्रेस ने हिन्दू-मुसलमान ऐक्य के लिए प्रयास किये। हिन्दू सभा को यह ठीक नहीं लगा । अखिल भारतीय राजभाषा के पद से अंग्रेजी को हटाकर उसकी जगह हिन्दी लाने का प्रयत्न गांधीजी ने किया । अंग्रेजों ने मुसलमानों को उत्तेजित करते हुए कहा, "आपका राज था तब इन्हीं हिन्दुओं ने उर्दू को राजभाषा मान्य किया था ।" हिन्दू कहने लगे, "इसीलिए तो हम उर्दू के खिलाफ अब विशुद्ध हिन्दी चलाते हैं।” ऐसे झगड़ों से अंग्रेजी भाषा का स्थान मजबूत हुआ। हमें पाकिस्तान मान्य करना पड़ा । ऐसे झगड़ों से सचेत होकर अपना घर सुधारें तो वे हिन्दू कैसे ? अस्पृश्यता निवारण करके अछूतों को हिन्दू समाज में सम्मान का स्थान देने का प्रयत्न गांधीजी ने किया। गांव के और शहर के भी अनेक हिन्दुओं ने धर्म के नाम से गांधीजी का विरोध किया। इस परिस्थिति का लाभ लेकर भारत में अंग्रेज सरकार ने प्रजा को थोड़े से अधिकार देते समय जाहिर किया कि सवर्ण हिन्दुओं का अलग समाज मानेंगे । अछूतों के अधिकार हिन्दुओं के हाथ में सुरक्षित नहीं, इसलिए उनको गैर-हिन्दू मान उन्हें स्वतन्त्र अधिकार देंगे। जैसे मुसलमान, ईसाई हिन्दू नहीं हैं, इसलिए उन्हें अलग अधिकार हैं । उसी तरह अछूत कौमों को भी गैर-हिन्दू मानकर अलग अधिकार देंगे । अमु जातियों को अछूत माननेवाले सवर्ण हिन्दू लोग सरकार की चालबाजी समझ तो गए, किन्तु अपना स्वभाव छोड़ नहीं सके। समाज सुधार पूरा करते नहीं थे और राजद्वारी कमजोरी बढ़ती जाय तो उसे लाचारी से अथवा लापरवाही से मान्य रखते । लेकिन गांधीजी यह कैसे सहन कर सकते थे ! अस्पृश्यता दूर करने की बात समझाने में जमाने भले बीत जायं, लेकिन हिन्दू समाज पर यह राजनैतिक आघात एक क्षण के लिए भी कैसे सहन किया जाय । इस लिए सरकार के इस कार्य के खिलाफ गांधीजी ने आमरण उपवास शुरू किया। सरकार और प्रजा दोनों सहम गए । हिन्दू नेता गांधीजी के पास दौड़े आए और उन्होंने गांधीजी को वचन दिया कि हिन्दू धर्म में और समाज अस्पृश्यता को रहने नहीं देंगे । इसी समय गांधीजी ने अछूत कौम के लोगों को 'हरिजन' नाम दिया । सन्तों ने एक जगह इस वचन को काम में लिया था, उसका लाभ लेकर गांधीजी ने जाहिर किया कि अछूत कौमों की अस्पृश्यता दूर करते हैं और उनको हरिजन का आदर का नाम देते हैं । बढ़ते कदम : जीवन-यात्रा / १६६
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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